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________________ प्रद्युम्न 'षष्ठिहायिन' अर्थात् धान्यको पकानेवाले 'कुथप्राप्तरुचो' अर्थात् दुवको हरी भरी शोभा युक्त करनेवाले, और अपने मदरूप जलकी वर्षा से पृथ्वीतलको कोचड़युक्त करनेवाले होते हैं ।१८-१९। तीखे खुरोंके || चरित्र अग्रभागसे सारी पृथ्वीको खोदते हुए, अपने समूहसे धराको व्याप्त करते हुए, तथा अपने आच्छादनों से सजे हुए शीघ्रगामी घोड़े अपनी हिनहिनाहटसे शत्रुके घोड़ोंको बुलाते हुए, चलने लगे।२०२१। शस्त्रों (हथियारों) और दिव्य अस्त्रोंसे जिनके मध्य भाग पूर्ण मनोहर थे, तथा जिनके पहियोंके शब्दोंसे संसार वधिर (बहिरा) हो रहा था, ऐसे रथोंके समूह भी पृथ्वीको व्याप्त करते हुए तथा हवासे उड़ती हुई धुजाओंसे पर-शत्रको बुलाते हुए चल पड़े ।२२-२३। इसी प्रकारसे ढाल तलवार बांधे हुए तथा कवचसे शरीरको ढके हुए पैदल सारी धरतीको अाच्छादित करते हुए निकल पड़े।२४। शत्रुकी हारके प्रतिबंधक अनेक अशुभ निमित मार्गमें दिखलाई दिये, अर्थात् शत्रुकी हार नहीं होगी, इसके प्रगट करनेवाले अनेक अशुभ शकुन मार्गमें हुए, तो भी सारे यादव, भोजक, और पांडवादि उत्तमोत्तम शूरवीर क्रोधसे भरे हुए योग्य अयोग्यका विचार किये बिना ही चलने लगे।२५-२६। उधर प्रद्युम्नकुमारने भी अपनी माताको उस विमानमें जाकर बिठा दो, जो नारदमुनि और उदधिकुमारीसे शोभित हो रहा था। वहां माताने नारदजीको विनयपूर्वक नमस्कार किया और बहूने सासको प्रणाम किया इस प्रकार विमानमें नारद और वधूके सहित गुणवती रुक्मिणीको छोड़कर कामकुमार पृथ्वीपर उतरा और वहां लम्बे चौड़े मैदानको पाकर उसने एक हाथी, घोड़ों, रथों तथा पैदलोंसे भरी हुई अचरजकारी सेना बनाई ।२७-३०। जिस प्रकारसे श्रीकृष्णजीकी सेनामें केशव आदि नामके धारण करनेवाले राजा थे, उसी प्रकारसे प्रद्युम्नकी सेनामें भी वे ही सब राजा हो गये। जिस प्रकारके चिह्न कृष्णजीकी सेनामें थे, उसी प्रकारके सब चिह्न (ध्वजा आदिके) यहां हो गये। वेष तथा रूप भी दोनों तरफके एकसे हो गये । बाजोंके शब्द भी एकसे होने लगे, बन्दीजन भी एकसी || Jain Educat International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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