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प्रद्यम्न
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जाऊँगा । ९५ । परन्तु मैं चोर नहीं हूँ और विट अर्थात् व्यभिचारी भी नहीं हूं - अपने शक्तिके जोर से लिये जाता हूँ ।६६। उसके वचन
सुनकर शूरवीर लोगोंसे भरी हुई यादवों की सभा एकाएक चोभित हो गयी ६७ और वायुके प्रचण्ड आघातसे जैसे समुद्रकी तरंग उछलती हैं उस प्रकार से उछलने लगी । अथवा जैसे समुद्र में बड़वानलों की पंक्ति प्रज्वलित होती है, उस प्रकारसे प्रज्वलित हो उठी । ९८ । बलदेवजी मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। सारे यादवगण उनके चारों ओर घेरकर बैठ गये । परन्तु थोड़ी ही देर में वे उसी प्रद्युम्नके जोशीले वाक्य सुननेसे सचेत हो गये । मृर्च्छा निवृत्ति हो गई शूरवीरों को बड़ा क्रोध आया। वे यद्यपि गौरवर्ण के थे, तो भी उस समय क्रोधसे लाल लाल हो गये । ६६-१०००। उनकी भौंहें ललाटपर चढ़ गयीं और शरीर कांपने लगा । सो ठीक ही है, ऐसा कौन मनुष्य है जो भय तथा क्रोध के उत्पन्न होने पर अपने स्वभावसे व्युत न हो जाता हो । अर्थात् भय तथा क्रोध होने पर सभी लोग विकारयुक्त हो जाते हैं |१|
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जिस समय भीम अर्जुन आदि पांडव क्रोधित होकर अपने २ आसनोंसे उठकर चलने लगे; उस समय उन्हें युधिष्ठिरने इशारे से समझाया कि, शत्रुका साम्हना होने पर युद्ध में ही तुम्हारी वीरता देखी जावेगी! इस समय व्यर्थ ही कोप करनेसे क्या लाभ है ? स्थिरता रखनी चाहिये । २-४ | कितने ही शूरवीर जिनका कि शरीर क्रोध से आच्छन्न हो रहा था - भर रहा था, हाथोंसे छाती ठोकते हुए, कठोर तथा दुष्ट वचन बोलने लगे । ५ । कितने ही अतिशय क्रोधी योद्धा होठों को डसते हुए अपने भुजबन्धन तथा मणियोंसे प्रकाशमान भुज तटोंको हाथोंके अग्रभागसे पीटने लगे अर्थात् ताल ठोकने लगे | ६ | कितने ही राजपुत्र वीर क्रोधित होकर युद्धकी इच्छा करते हुए और अङ्गों को चलायमान करते हुए बड़े भारी घमंड तथा मानके साथ हँसने लगे | ७| कितने ही शूर राजा जिनका कि मान ही एक धन
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