________________
प्रयत्न
चरित्र
कुमारने कहा, माता ! इस तरह जाकर कैसे मिल पाऊँ ।६७। माता बोली, यादवोंसे परिवेष्टित (घिरे) हुए तेरे पिता राजसभामें बैठे हुए होंगे, सो उन्हें जाकर प्रणाम करके मिल था।६८। प्रद्युम्नकुमार फिर बोले कि, जो उत्तम कुलमें उत्पन्न होते हैं, चिरकालमें आकर मिलते हैं, और गुणवान तथा पराक्रमी होते हैं वे अपनी शक्तिका वर्णन नहीं करते हैं, और न अपने नामका कीर्तन करते हैं। अतएव हे माता में स्वयं ऐसा जाके कैसे कहूँ कि मैं "तुम्हारा पुत्र हूँ !" १६९-७०। सो माता में पहले पिता और बन्धुओंसे युद्ध करके, नानाप्रकारके वाक्योंसे उनकी तर्जना करके, और अपने पराक्रमको दिखला करके अपने नामको प्रगट करूंगा-अर्थात् वे सब लोग स्वयं ही मेरा नाम जान जावेंगे। ऐसा किये बिना अर्थात् जबतक वे स्वयं मुझे न जानने लगें तब तक मेरा मिलना उचित नहीं होगा ७१-७२। घर घर जाकर अपने आनेको वार्ता सबसे कहता फिरे, यह बात इस तेरे पुत्र के योग्य नहीं है ।७३। रुक्मिणीने कहा, तुझे ऐसा नहीं करना चाहिये। क्योंकि यादवलोग बड़े ही बलवान हैं। हे बेटा ! वे तुझसे कैसे जीते जावेंगे। यादुवंशी भोजवंशी और प्रचण्ड तेजके धारण करनेवाले पांडव रण विजयी हैं। उन्होंने अनेक युद्धोंमें विजय प्राप्त की है। उन्हें तू कभी नहीं जीत सकेगा ।७४७५। प्रद्युम्न बोले, माता इस विषयमें बहुत कहनेसे क्या है, श्रीनेमिनाथ भगवानको छोड़कर तू अभी देखेगी कि अन्य सब कैसे बलवान हैं ।७६। ऐसा कहकर और थोड़ी देर ठहरकर कुमारने मातासे कहा कि मैं तुमसे कुछ मांगता हूँ, सो मुझे देनेकी प्रतिज्ञा करो।७७। पुत्रके वचन सुनकर माता बोली, बेटा मांगो मांगो ? क्या मागते हो, मैं, जो मांगोगे, सो दूंगी।७८। कुमारने कहा माता तू मेरे साथ विमानमें बैठनेके लिये चल, जिसमें कि नारदमुनि तेरी बहूके साथ बैठे हुए हैं, और जो लोकमें अतिशय सुन्दर है । मुझपर कृपा करके जल्द चल । वहां तुझे छोड़कर फिर में अपनी इच्छानुसार काय करूंगा। बस तुझसे में यही याचना करता हूँ ७९-८०।
Jain Education International
For Privale & Personal Use Only
www.jainelibrary.org