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________________ चरित्र शान्त होते हैं, अर्थात् इन्हें सिंहयुद्ध ही प्यारा लगता है ।३९ । माताके वचन सुनकर कुमार बोले, अच्छा तो मैं क्षणभरमें इनके बलको देखता हूँ।४०। माता बोली, तुझे ऐसा नहीं करना चाहिये । बलदेवजी बड़ेभारी बलवान हैं । भला उन्हें कौन जीत सकता है ? बेटा ! यदि तुझे जीवित रहनेकी इच्छा हो, तो जल्द ही जाकर और उनके चरणों में पड़कर उन्हें सन्तोष कर ।४१-४२॥ माताके इसप्रकार वचन सुनकर कुमार बोले, तुम क्षणभरके लिये यहां चुपचाप बैठी रहो और मेरा पराक्रम देखो।४३॥ वहां जब तक बलदेवजी कोपाग्निसे प्रज्वलित होकर बड़े पेटवाले विपके साथ युद्ध करनेके लिये गली में आये, तब तक यहां प्रद्य म्नकुमारने अपनी उस मायाको समेट करके अर्थात् ब्राह्मणको लोप करके अपना वेष बदल लिया और सिंहका रूप धारण कर लिया ।४४-४५। उस सिंहकी दाढ़ें दोयजके चन्द्रमाके समान टेढ़ी और सफेद थीं, उसका आकार चंड अर्थात् भयङ्कर था और केशरके समान केशरका (बालोंका) समूह उसकी गर्दनपर चंचल होता हुआ शोभित हो रहा था। सिरपर रखी हुई पूंछसे वह बहुत अच्छा मालूम होता था। अँभाई लेता हुआ समस्त दिशाओंकी ओर भयङ्कर दृष्टिसे देखता था ।४६-४७। उसे घरके भीतरसे गर्जना करते हुए आते देखकर बलभद्रजीको अचरज मालूम हुअा। यहां राजमहलके भीतर जो यह सिंह दिखलाई देता है, सो अवश्य ही कुछ रुक्मिणीकी माया जान पड़ती है । अब तो रुक्मिणी श्रीकृष्णजीके योग्य नहीं रही, ऐसा विचार करके अपने बायें हाथ को सुन्दर उत्तरीय वस्त्रसे अर्थात् दुपट्टे से लपेट करके और उसे आगे करके क्रोधपूरित बलदेवजी सिंह पर झपट पड़े।४८-५०।तब एक दूसरेका घात प्रतिघात करनेमें, ताड़नेमें, उछलनेमें तर्जना करनेमें और अतिशय चतुर वे दोनों शूरवीर अपनी इच्छानुसार युद्धक्रीड़ा करने लगे। बहुत समय तक उनकी लड़ाई होती रही, परन्तु न तो किसीने हार खाई और न किसीने जीत पाई। आखिर सिंहवेषधारी प्रद्युम्नने छलांग मारके एक पंजेकी थप्पड़से बलदेवजीको धराशायी कर दिया ।५१-५३। और अपना असलीरूप Jain Edu International For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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