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प्रधान
चरित्र
कार्य है। अतएव में निश्चयपूर्वक यहीं से जाऊंगा। तू पराये घर खाकर और मार्ग रोककर पड़ रहा है ।१७-२४। बर्तन दूसरेके थे, परन्तु पेट तो दूसरोंका नहीं था ? कुछ कसर रख छोड़ी होती, ? सच है ब्राह्मणोंमें भोजन की लोलुपता स्वभावसे ही अधिक होती है ।२५। यह सुनकर विप्र वेषधारी बोला यदि तुम इसप्रकार जानते हो, तो फिर क्यों बकवाद करते हो ।२६। बलभद्रजी फिर बोले, अरे अधम वृथा क्यों बक रहा है ? यहांसे उठ और मुझे रास्ता दे ।२७। विप्र बोला, अरे अधम क्षत्रिय, व्यर्थ ही गालियां क्यों देता है ? तुझे जाना है, तो मेरे ऊपरसे क्यों नहीं चला जाता ।२८।
यह सुनकर बलभद्र विपके पैर पकड़कर नगरके द्वार तक ले गये और वहांसे छोड़कर ज्योंही लौटकर पीछे देखते हैं, त्योंही उस विप्रका शरीर जहां था, वहांका वहीं पड़ा हुआ मालूम पड़ता है। यह देखकर वे रुक्मिणीसे बहुत ही क्रोधित हुए । बोले, आज वह वधूटिका (छोटे भाईकी बहु) मेरे ही ऊपर मायाचलानेको उतारू होगई है। जानपड़ता है कि अब वह सामान्य रुक्मिणी नहीं रही है। अवश्य ही कोई शाकिनी डाकिनी है, ॥२६-३१। ऐसा कहकर क्रोधसे व्याकुल हुए बलभद्रजी फिर दरवाजेपर आये उन्हें देखकर प्रद्युम्नकुमारने मातासे पूछा, यह भारी सूर पुरुष कौन है। और इसके आनेका क्या कारण है ? मुझसे जल्द कहो । युद्धकी इच्छा करनेवाला भौहें और मुख टेडा किये हए अाता है । सो यह भी ऐसा ही (युद्धार्थी) मालूम पड़ता है ।३२-३४। यह सुनकर रुक्मिणी बोली, बेटा ! यह बलदेव नामके बड़े भारी योद्धा तेरे पितृव्य अर्थात् बड़े काका हैं । ये बड़े भारी पराक्रमी हैं, तेरे पिताके प्राणोंके समान हैं शत्र समूहके घात करनेवाले हैं, पुरुषोंमें अग्रगामी हैं और यादवोंके पूज्य हैं। पृथ्वीमें इनके समान कोई नहीं है । संसारमें ऐसा कोई वीर नहीं है, जो इनके साथ युद्ध कर सके। ।३५-३७। प्रद्युम्नकुमार बोले, हे माता ! इन्हें क्या प्यारा लगता है और किसके साथ युद्ध करनेकी इन्हें इच्छा रहती है। ।३८। माता बोली, ये युद्धकी रंगभूमिमें बड़े २ भयंकर सिंहोंके साथ लीला करके
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