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चरित्र
आनन्दमें मग्न हो गई थी। यह तो हमने आपके वचनोंसे जाना है, नहीं तो हमको कुछ भी सन्देह नहीं था ।३५-३८। उसके यह वचन सुनकर सत्यभामाको बड़ा भारी क्रोध आया। क्योंकि सेवक लोगों के पराभव होनेमें स्वामीका हो पराभव समझा जाता है ।३९। वह बोली इसमें रुक्मिणीका कुछ दोष नहीं है । विवेक रहित कृष्ण गोपालकी (ग्वालाकी) ही यह करतूत होगी।४०। स्वामीकी आज्ञा पाकर ही रुक्मिणीने यह उपद्रव किया होगा। कहावत है कि बिना यमराजकी आज्ञाके बालक भी नहीं मरते हैं (?) ॥४१॥ यदि वह अपनी बेणीके बाल नहीं देना चाहती थी, तो न देती। मेरी दासियोंकी विड. म्बना-दुर्दशा उसने क्यों की ।४२। यह तो मैं जानती हूँ कि रुक्मिणी श्रीकृष्णजीकी वल्लभा है । तथापि मेरे लोगोंकी तो उन्हें दुर्दशा नहीं करानी थी।४३। ऐसा कहकर सत्यभामा अपने मन्त्रियोंसे बोली कि श्रीकृष्णजीकी सभामें मेरी इन दासियोंको तथा नाऊको ले जाकर बलदेवजीके समक्ष में रुक्मिणीका यह चरित्र कहो ।४४-४५। सत्यभामाकी आज्ञानुसार मन्त्रिगण दासी आदिको लेकर शीघ्रतासे यदुवंशियोंकी सभाकी ओर रवाना हुए। इतने में कृष्णजीकी दृष्टि सत्यभामाकी दासियों पर पड़ी। उनकी नाक कानकी विडम्बना देखकर वे सारी सभाके सहित खूब जोरसे हँस पड़े।४६-४७। उन्हें हँसते हुए देखकर मंत्रियोंने अपने मनमें विचार किया कि अवश्य इन्होंने रुक्मिणीको सिखलाकर उपद्रव कराया है। अतएव इनके आगे जो पुकार की जावेगी, वृथा जावेगी, ऐसा निश्चय है। हाँ ! बलदेवजी से बेधड़क होकर कहना चाहिये ।४८-४६। ऐसा विचारकर मंत्रियोंने सभामें उपस्थित होकर रुक्मिणीके द्वारा पहले की हुई प्रतिज्ञाके अनुसार वेणी लेनेके लिये गई हुई सत्यभामाकी दासियों की तथा नाऊकी जो दुर्दशा हुई उसका सब वृत्तान्त कह सुनाया। उसे सुनकर कृष्णजीने पूछा कि उसने इन सबके कान नाक और बाल कैसे काट लिये ? ये तो दासियां वगैरह बहुतसी दिखती हैं ? उस अकेली ने इन सबकी विडम्बना कैसे की ? कृष्णजीके ऐसे वचन सुनकर बलदेवजी क्रोधित होकर
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