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________________ चरित्र २२। इसप्रकारसे गुणोंका गान करती हुईवे स्त्रियां नाईके साथ चौराहे पर चलने लगीं। सो उन्हें प्रयम्न। देख देखकर नगरके लोग हँसने लगे ।२३। वे अपने चित्तमें समझती थीं कि ये हमारा मनोहर रूप २५६ देखकर और उसमें मोहित होकर हँसते हैं, परन्तु लोग उनके नाक कान कटे हुए विचित्र रूपको देख कर हँसते थे ।२४॥ हर्षसे परिपूरित हुयीं वे सब स्त्रियां नाऊके सहित नाचतीं गातीं कुछ समयमें सत्यभामाके घर पहुँच गयीं। उन्हें अपने आगे खड़े २ रुक्मिणीके गुणोंका वर्णन करती देखकर सत्यभामा बोली; तुम सब आनन्दसे हँसती हुई यहां किसका स्तवन कर रही हो और क्यों करती हो। यह सुनकर नाऊ बोला; हे देवी ! हम सर्वगुण सम्पन्ना रुक्मिणीकी सच्ची स्तुति करते हैं । वह कृष्णकी प्यारी बड़ी ही प्रियवादिनी है। उसने हमको अपने केश बड़ी विनयके साथ हर्षपूर्वक ले लेने दिये। यह सुनकर सत्यभामा बोली, हे युवतियों ! मुझसे कहो कि तुम्हें ऐसी विलक्षण रूपगली किसने कर दी है ? और हे नाऊ ! यह तेरी नाक भी बतला किसने काट डाली है ? और सबोंके कान, नाक, सिरके बाल तथा अंगुलियां किस पापीने काट डाली हैं ।२५-३१। सत्यभामाके वचन सुनकर नाऊ और वे सब स्त्रियां अपने २ हाथोंसे अपने अपने सिर, कान, नाक टटोलने लगीं। जब जाना कि सचमुच ही नाक कानोंकी सफाई हो गई है, तब सब अपने २ अंगोंको ढंकने लगी और लज्जासे प्राकुल व्याकुल हो गई। कटे अंगोंमें रक्तके गिरनेसे बड़ी भारी वेदना होने लगी, जिसके दुःखसे पीड़ित होकर वे सब जोर जोरसे चिल्लाने लगीं ।३२-३४। यह दुर्दशा देखकर सत्यभामा क्रोधसे लाल २ अांखें करके बोली, बतलायो किस पापीने यह उपद्रव किया है ? तब उन सबने रोते २ जवाब दिया कि हम सब कुछ नहीं जानते हैं। रुक्मिणी ने तो हमको सन्तोषके साथ अपने सिरके बाल ले लेने दिये थे । उसके केशोंको देखकर हमारी बुद्धि Jain Educatiemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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