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________________ चरित्र मेरे सिरके बाल लिये जावेंगे, इस भयसे मैं पहले ही नगरके बाहर मरने लिये जाना चाहती ___ ग्यम्न | थी। परन्तु उसी समय नारदजीने पाकर पुत्रके आगमनका शुभ समाचार कहकर मुझे तृप्त कर दिया था। इससे मैंने अपने मरनेकी इच्छा अानन्दके साथ छोड़ दी थी ।९५-९६। श्रीसीमंधर भगवानने पहले नारदजीसे पुत्रके आगमन समयके जो जो सुन्दर चिह्न कहे थे, वे सब इस समय मेरे घरपर हो रहे हैं, परन्तु मेरा पुत्र अभी तक नहीं आया। हाय ! मेरी अाशा नष्ट हो गई। अब मैं क्या करू ।६७-६८। नारदने मेरे साथ बड़ी शत्रुता की, जो वे मेरे मरनेमें बाड़ हो गये । मैं मरना चाहती थी, सो उन्होंने नहीं मरने दिया । न मेरा पुत्र ही पाया, और न मैं मर ही पाई । हाय ! मैं दोनों ओरसे भ्रष्ट हो गई । अब क्या करूं ।।९। इस प्रकार ब्रह्मचारी क्षुल्लकको अपने दुःखका कारण निवेदन करके रुक्मिणी आंसू बहाने लगी। यह देखकर प्रद्युम्नने कहा, हे माता ! व्यर्थ ही शोक मत कर। मेरी बात सुन,-तेरा पुत्र जो कार्य करता, क्या वह मैं नहीं कर सकता हूँ।८००-८० १॥ प्रद्युम्नकुमार माताको इसप्रकार समझाकर सत्यभामाकी दासियोंके आगे जो उसने केश लेनेके लिये भेजी थीं, इस प्रकारकी विक्रिया करने लगे।२। उन्होंने एक मायामई नई रुक्मिणो बनाई जो सब प्रकारके अाभरणोंसे सुसज्जित थी, दिव्य थी, और सिंहासन पर विराजमान थी। और असली रुक्मिणीको लुप्त करके श्राप स्वयं कंचुकीका रूप धारण करके सिंहासनके आगे खड़ा हो गया।३-४। इतनेमें सत्यभामाकी सब दासियां नाईके साथ रुक्मिणीके समीप आयीं, और बड़ी नम्रतासे डरती २ इसप्रकार बोलीं; हे माता ! हमारा इसमें कुछ भी दोष नहीं है । हम तो नीच सेविका हैं । स्वामिनीने हमको भेजा है। हम स्वामिनीकी आज्ञासे यहां आई हैं। यदि दूषण है, तो सत्यभामाका है, जिसने हमको भेजा है ।५-७। यह सुनकर मायामई रुक्मिणी बोली, तुम अब आयीं, सो अच्छा किया। अब बतलायो कि, तुम किसलिये आई हो ? अपने Jain Edue international For Private & Personal Use Only www. brary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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