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देखकर रुक्मिणी अतिशय दुःखी हुई और उसके उद्व गसे वह आंसू बहाने लगी। उसकी ऐसी चेष्टा देखकर क्षुल्लकने पूछा, तुझे एकाएक शोकका उद्वेग कैसे हो गया इसका कारण मुझे जल्द ही बत- || चरित्र ला ७५-८०। क्षुल्लकका प्रश्न सुनकर रुक्मिणी गद्गद्वाणीसे बोली हे महाराज इसका कारण मैं आपसे कहती हूँ। आप एकचित्त होकर सुनें ।८१॥ श्राप जैसे यतियोंसे दुःखका कारण निवेदन करने से दयाधर्मके प्रभावसे वह दुःख नष्ट हो जावेगा;-८२।।
"मेरे पतिकी सत्यभामा नामकी एक पहली रानी है, जो विद्याधरकी पुत्री है, कलावती गुणवती और पापरहित है।३। और मैं यद्यपि भूमिगोचरी राजा भीष्मकी पुत्री हूँ, तो भी मुझपर किसी पूर्व पुण्यके प्रभावसे मेरे पति (श्रीकृष्ण) प्रसन्न रहते हैं।८५। हम दोनोंने पहले एकवार घमंडमें श्राकर अच्छे २ साक्षियोंके साम्हने एक प्रतिज्ञा की थी कि, हम दोनोंमेंसे जिसके पहले पुत्र होगा, उसीके पुत्रका पहले विवाह होगा। और विवाह के समय जिसके पुत्र नहीं होगा, वह अपनी चोटीके बालोंमे पुत्रवतीके पर पूजेगी ।८५.८७। हम दोनोंने पूर्वमें अतिशय गर्वसे यह प्रतिज्ञा की थी, सो पहले सम्पूर्ण लक्षणोंवाले पुत्रका जन्म मेरी कूखसे हुआ और उसके पीछे उसी दिन सत्यभामाके भी कमलोंके समान नेत्रवाला भानुकुमार नामका विवक्षण पुत्र हुअा।८८८६। परन्तु मैं ऐसी पुण्यहोन निकली कि कोई पूर्वभवका वैरी दुष्ट दैत्य मेरे बालकको हर ले गया। और सत्यभामाके पुण्यसे भानुकुमार क्रम क्रमसे बढ़ने लगा। सो ठीक ही है, सब सुख पुण्यसे प्राप्त होते हैं। भानुकुमार अब विवाहके योग्य हो गया है । और हस्तिनापुरके राजा दुर्योधन की उदधिकुमारी नामकी गुणवती कन्या अपने पिताकी भेजी हुई उस अनुरागी भानुकुमारको वरण के लिये आई है। आज उन दोनोंका विवाह होनेवाला है । सो प्रतिज्ञाके अनुसार मुझ पुण्यहीनाके मस्तकके बाल लेने के लिये सत्यभामा की दासियां नाईको लेकर आई हैं ।६०-६४।
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