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पड़ते हैं उमर भी इसकी बहुत थोड़ी है । फिर इसके नीचे बैठकर कैसे भोजन किया जावे ? तब और
और लोग बोले भाई इसके साथ कलह करनेसे क्या लाभ होगा ? चलो, इस मूर्ख पापीको यहां अकेला || चरित्र छोड़कर चलें और दूसरे रसोईघरमें जाकर आनन्दके साथ भोजन करें। ऐसा कहकरके वे सबके सब विप्र मनमें लज्जित और क्रोधित होते हुए दूसरे घरमें चले गये। परन्तु जाकर देखा तो वहां पर भी मुख्य प्रासनपर वही विप्र बैठा हुआ है उसे वहां भी देखकर वे विप्रगण और भी क्रोधित हुए और | बोले; यह जातिहीन छोकरा बड़ा ही दुष्ट है । यद्यपि सत्यभामा महाराणीकी इसपर दृष्टि पड़ गई है, अर्थात् उनकी इस पर कृपा हो गई है, तथापि यह बड़ा कलहप्रिय है । इसीप्रकार से यद्यपि यह विप्र का वेष धारण किये है, तथापि विप्रोंसे द्वेष करता है, नीच है, वेदकी सम्पूर्ण विधियोंके जाननेवाले स्मृतिशास्त्रों के पार पहुँचे हुए उत्तम जाति वंश तथा कुलवाले, सर्व विद्याविशारद, त्रिपाठी (तिवारी), चतुर्वेदी (चौबे), द्विवेदी (दुबे) और याज्ञिक विप्रोंका तिरस्कार करता है । बड़ा दुष्ट है । इस पापीको अब अवश्य ही मारना चाहिये । क्योंकि विपद्वषी पापीके मारनेमें पाप नहीं होता है । विप्रोंको इम प्रकार बातचीत करते हुए देखकर विप्रवेषधारी प्रद्युम्नकुमार हँसके बोला, हे विप्रो सुनो-१८-३०। तुम सब छही शास्त्रोंके सहित वेदोंको जानने वाले हो; ऐसा जो कहते हो सो इसमें क्या प्रमाण है ? क्योंकि तुम अाचारहीन भ्रष्ट हो । यदि वेदज्ञ होते, तो श्राचारहीन नहीं होते।३१.३२। और मनुष्यके लक्षणमें विप्रत्व, होनेका क्या प्रमाण है क्योंकि विप्रत्वका लक्षण जो दया है, सो तुम लोगोंमें दुष्पा प्य है अर्थात् मुश्किलसे भी तुममें दया लक्षण नहीं मिल सकता है। जिन लोगोंमें यज्ञमें घोड़ा, मनुष्य, राजा, और माता पिता भी हवन किये जाते हैं, वे कैसे समीचीन हो सकते हैं तथा जिसमें जीवोंको मारनेमें पुण्य कहा है, अथवा जो लोग जीववधको पुण्य कहते हैं, वे वेदशास्त्र तथा मनुष्य कैसे प्रमाणभूत हो सकते हैं जिसमें मधु, मद्य (शराब) और मांसको खाने योग्य बतलाया है, यदि
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