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प्रद्युम्न
चरित्र
और स्त्रियोंके समूहकी याचना क्यों नहीं करता है, तू बड़ाही भाग्यहीन है जो केवल भोजन मांगता है। अथवा इसमें तेरा ही दोष क्या है, भाग्यके अनुसार ही लोगोंके मुहसे शब्द निकला करते हैं। जो लोग पुण्यहीन होते हैं, उनके मुंहसे शब्द भी वैसे ही निकलते हैं, जिनसे कुछ प्राप्ति न हो 1६१-६४। इसके उत्तरमें चतुर कुमार बोला, अरे विनों, हाथी घोड़ा आदि जो कुछ मांगा जाता है, सो सब अन्नके लिये-भोजनके लिये मांगा जाता है ।९५। अतएव में महाराणीसे उसी भोजनकी याचना करता हूँ। हे सत्यभामा अपने पुत्रकी मंगलकामनाके लिये मुझे बहुतसा भरपेट और स्वादिष्ट भोजन शीघ्र दे मेरे सन्तुष्ट होनेसे सारा जगत सन्तुष्ट हो जावेगा, और मेरे भोजन करनेसे सारे विष भोजन कर चुकेंगे।६६-६७। अतएव हे माता मुझे विधिपूर्वक इच्छानुसार भोजन करादे। भूखे विप्रको बातें सुनकर सत्यभामा प्रसन्न हुई। उसने अपने सेवकोंसे कहा इस भूखसे व्याकुल हुए विप्र को रसोईघरमें ले जायो और जितना यह खावे, उतना खिला दो यह सम्पूर्ण शास्त्रोंका जाननेवाला बड़ा भारी विवेकी विप्र है । अतएव इसको आदर सत्कारसे भोजन कराना ।।८-४००। अपने सेवकों से इसप्रकार कहकर रानीने विप्रसे कहा, हे द्विजोत्तम, मेरे सेवक आपको यथेष्ठ भोजन करावेंगे, अतएव तुम उनके साथ रसोईघरमें जाओ ।। सत्यभामाके वचन सुनकर विप्र वेषधारी बोला, मैं इन मूर्ख तथा अधम विप्रोंके साथ भोजन नहीं करूंगा।२। हे माता, जो पाखंडी हैं, कुशील हैं, स्त्री पुत्रादिमें उलझे हुए हैं, सन्ध्यादि क्रिया कर्म नहीं करते हैं, व्रत आचरण नहीं करते हैं वेद और वेदके अंग (स्मृति श्रुति आदि) नहीं जानते हैं केवल नाममात्रके विप्र हैं, विप्रोंकी समाजमें घुसते हैं परन्तु ब्रह्मकर्म नहीं करते हैं और सच बोलना तो जानते ही नहीं हैं ऐसे द्विजोंके साथ में कैसे भोजन करूंगा अतएव इन विप्रोंको भोजन देना चाहते हो तो अलग दे दो, मेरे साथ इनका भोजन न बनेगा ।३.५। हे देवी ! ये तो सब पतित हैं-पापी हैं । विप्रोंके सम्पूर्ण लक्षणोंसे रहित और केवल |
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