SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रचम्न २३५ था, और जिसमें धुजा पताका तोरण आदि भूषित हुए अनेक मंडप शोभित हो रहे थे ।७६-७८ । उसे देखकर प्रद्युम्नने अपनी कर्णपिशाची विद्यासे पूछा, हे विद्या ! यह सुन्दर मन्दिर (घर) किसका है, जो इस भुवनमें सबसे श्रेष्ठ जान पड़ता है । विद्याने उत्तर दिया, यह लोकप्रसिद्ध मन्दिर श्रीसत्यभामा महाराणीका है । विद्याकी बात सुनकर कुमार बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने यह विचार करके कि, अपनी माताकी सौता यह श्रेष्ठ घर देखना चाहिये, तत्काल ही सम्पूर्ण विद्याओं के जाननेवाले एक चौदह वर्ष के ब्राह्मण बालकका रूप बना लिया । ७६ ८१ । उसके नेत्र बड़े २ थे, शरीर पीला था. . और स्वभाव बहुत चपल था । वह बहुत बोलता था, और वादविवाद करने में चतुर था। खूब जोर जोर से वेदका पाठ करता हुआ वह सत्यभामा के महल में भोजन के लिये गया । और सत्यभामा को सिंहासन पर बैठी हुई देखकर बोला, हे नारायण के मानसरोवररूप हृदय में वास करनेवाली राजहंसनी ! तथा हे विस्तृत पुण्यकी धारण करनेवाली सत्यभामादेवी स्वस्त्यस्तु अर्थात् तेरा कल्याण हो । यह सम्पूर्ण शास्त्ररूपी समुद्र के पार पहुँचा हुआ श्रेष्ठ ब्राह्मण भूख से व्याकुल हुआ तुझसे भोजन पानेकी इच्छा करता है । अतएव हे माता, तुझे जितनी मेरी इच्छा है, उतना भोजन करा दे। उसकी बातें सुनकर सत्यभामा मुसकुराने लगी । ८२-८६ । उसे हँसती देखकर ब्राह्मण बोला, हे शुभे ! तू हँसती है, सो क्या भोजन कराने की इच्छा नहीं है | ७| उसदिन द्वारिका के रहनेवाले सम्पूर्ण ब्राह्मणों का भी सत्यभामाने पुत्रके विवाहकी खुशी में निमंत्रण किया था । सो जब सत्यभामासे वह विप्र भोजनकी याचना कर रहा था, उसी समय वे सब मिलकर वहाँ पहुँच गये । उन्होंने प्रद्युम्न की बात सुनकर कहा, हे अभागे विप्र ! तू भोजन ही क्यों मांगता है । ८८- ९० । सत्यभामा महाराणी जिसको अपनी नजर से देख लेती हैं, वही भाग्यवान हो जाता है। भला श्रीकृष्णजीकी महारानी संतुष्ट होकर किसको कृतार्थ नहीं करती हैं अतएव हाथी, घोड़ा, नानाप्रकारके रत्न, सोना, रेशमी वस्त्र, गोधन, नगर, धन, देशादि For Private & Personal Use Only Jain Education International चरित्र www.janeibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy