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________________ प्रद्युम्न २३८ । ६२-६३। अतएव इसे आप वैसे ही ले लीजिये। यदि आप मुझे बलमें गिराकर इसे लेना चाहते हों तो कैसे ले सकते हैं ? अर्थात् हराकर नहीं ले सकते हैं । ६४ । हे नाथ ! मेरा यह मेढ़ा बहुत ही शक्ति शाली है । यह मैं निश्चयपूर्वक जानता हूँ। फिर कहिये कि, इसे आपकी जांघ के सन्मुख कैसे छोड़ दूं ? | ६५ | यदि बलवान मेढ़ा आप जैसे पूज्य पुरुषोंको पृथ्वी पर गिरा देगा, तो ये यादवगण मेरा क्या नहीं करेंगे ? अर्थात् ये मेरी खूब ही दुर्दशा करेंगे । ६६ । उसके उक्त वचन सुनकर वसुदेवजीने हँस कर कहा, अपने मेढेको मेरी जांघपर छोड़ दो । इसमें तुम्हारा कुछ भी दोष नहीं समझा जावेगा ।६७। उनका उत्तर सुनकर मेढ़ेवालेने सब यादवोंसे तथा सेवकगणों से कहा यह देखो यदि यह महाराजको गिरा देगा, तो उसमें मेरा रंचमात्र भी दोष नहीं होगा । ६८ । यह सुनकर वे सब बोले, अरे मूर्ख ! यह विचारा मेढ़ा बलवान वसुदेव महाराजको कैसे गिरा सकता है ? ॥६९ | उन सबके वचन सुनकर मेढ़ेवालेने उस वज्रके समान कठोर मस्तकवाले मेढ़ेको जल्द ही छोड़ दिया, और कहा, हे पूज्यवर ! यदि आप समर्थ हैं, प्रधान पुरुष हैं, तो देखो यह अतिशय दुर्जय मेढ़ा रहा है, इसकी चोटको सहन करो । ७०७१ इसके इसप्रकार कहते ही उस मेढ़ने दौड़कर के वसुदेवजी के उस जांघ में खूब जोरसे चोट लगाई, जो उन्होंने टक्करके लिये साम्हने उठा रक्खी थी । ७२ । ठोकर लगते ही वे मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े वसुदेवजीको गिरा देखकर यादवगण चारों ओर से दौड़ आये, और मलय अगुरु चन्दनादिसे उनका शीतोपचार करने लगे । ७३-७४ | वहां जब तक यादव लोग वसुदेवजीको सचेत करनेमें लगे, तब मेढ़ेवालेने अपने मेढ़े को लेकर वहांसे कूच कर दिया ।७५ इसप्रकार अपने पितामहको (दादाको) गर्वरहित करके प्रद्युम्न कुमार हँसता हुआ वहांसे निकल पड़ा। रास्ते में चलते हुए उसने एक मनोहर घर देखा, जिसमें पुत्रविवाहका बड़ा भारी जलसा हो रहा For Private & Personal Use Only Jain Education International चरित्र www.jailembrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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