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________________ प्रथम्न २३७ घुंघराले थे, कण्ठ शंखके समान था, नाभि सुन्दर थी, अधर लाल तथा शोभायमान थे इसीप्रकार से चरण और हाथ की हथेली भी लाल और शोभायुक्त थी और दांत कुन्द की कलियोंके समान मनोहर थे। ऐसे सर्वांग सुन्दर दादाको देखकर प्रद्युम्न कुमारको बहुत सन्तोष हुआ। हाथी और घोड़े चलानेकी विद्या में तथा शस्त्रविद्या में प्रारंगत हुए उस स्वभावसे ही सौम्य तथा सुन्दर पितामहको देखकर कुमारने आनन्दके साथ दूरसे ही प्रणाम किया । वसुदेवजी भी उस युवा पुरुषको तथा उसके मेढेको देखकर प्रसन्न हुए । उस मेढ़ेका शरीर सुडौल तथा गोल था, सींग टेढ़े तथा सूखे थे, उसके कंठमें सुन्दर घुंघरू पहनायी गयी थीं, तथा वह बड़ा बलवान और शोभायमान था । ४९ । ५५ । उसे देखकर शौरी अर्थात् वसुदेवजीने स्वयं आदर के साथ पूछा, यह सुन्दर मेढ़ा किसका है, और किस लिये यहां लाया गया है युवा पुरुषने कहा, यह मेढ़ा मेरा है । यह बड़ा ही विषम तथा दुर्जय है । इस विषय में में कुछ हंसी नहीं करता हूँ । सचमुच ही यह बड़ा बलवान है । पहले इसने बहुत से युद्ध करके बहुत से मेढ़ोंको जीते हैं । ५६-५७। आपको मेढ़ोंकी लड़ाईका शौकीन तथा चतुर सुनकर मैं यहां तक माया हूं। इनका युद्ध देखनेके ही योग्य होता है । सो यदि देखना हो, तो आप ही इसका युद्ध देखें। क्योंकि पृथ्वी में इसके युद्ध की परीक्षा करने वाला चतुर पुरुष यापके सिवाय और कोई दूसरा नहीं है । ५८-५६ | मेढेवालेकी बात सुनकर वसुदेवजी बोले, यदि यह मेढ़ा दुर्जय है अर्थात् कोई इसे नहीं जीत सकता है, तो मेरी जांघपर टक्कर लगानेको छोड़ दे । ६० । यदि यह मेरी जांघको तोड़ डालेगा, तो समझ लिया जावेगा कि, इसके समान बलवान मेढ़ा पृथ्वी में और कोई नहीं है । ६१ | यह सुनकर मेढ़े वाला बोला नहीं मैं अपने मेढ़ेको आप पर नहीं छोड़ सकता हूँ। क्योंकि यह बहुत चपल, बलवान और मजबूत है । यदि मैं जान करके भी आप पर इसे छोड़ दूंगा, तो आपके सेवकगण मुझे मारे बिना नहीं रहेंगे। क्योंकि आप श्रीकृष्ण महाराजके पिता हैं Jain Educat international For Private & Personal Use Only चरित्र www.jain... Prary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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