________________
_अपम्न
___२३६
जितने हाथीके उपकरण होदा वगैरह थे, वे सब गधेके उपकरण हो गये और जितने गधेके थे, वे हाथी के होगये । पीतल सोना होगया और सोना पीतल होगया। रत्न कांच के टुकड़े और काचखंड || चरित्र उत्तम रत्न होगया। यौगंधरीय (ज्वार) मोती और मोती यौगन्धरीय होगये घी तैल होगया और तेल घी हो गया। कम्बल पट्टकूल (रेशमी कपड़े ?) और पट्टकूल कम्बल होगये।३३-३७। इसप्रकार नानाप्रकारकी अदलबदल करनेकी क्रीड़ा करते हुये प्रद्युम्नकुमार धीरे २ उस सुन्दर राजमार्गपर पहुँच गये, जो मदोन्मत्त हाथियोंके झरते हुए मदजलसे कीचड़मय और दुर्गम दिखलायी पड़ता था।३८-३९ ।
राजमार्गपर चलते हुए कुमारने एक सुन्दर मन्दिर (महल) देखा। उसे देखकर उन्हें बड़ा भारी अचरज हुआ। अतएव अपनी विद्यासे पूछा कि यह मनको हरनेवाला महल किसका है। विद्याने कहा, हे नाथ ! यह स्वर्गके महलोंसे भी विशेष सुन्दर आपके पिता श्रीकृष्णके पिता वसुदेव महाराज का है।४०-४२। यह सुनकर प्रद्युम्नने फिर पूछा कि इन्हें किस बातपर अधिक प्रेम है अर्थात् इन्हें क्या प्यारा लगता है ? विद्याने कहा, इन्हें मेंढा (मेष) लड़ाना-मेंदोंकी लड़ाई देखनेका बड़ा शौक है । इसपर उनकी बहुत प्रीति है ।४३। विद्याके वचन सुनकर कुमार उसी समय एक विद्यामयी मेढ़ा बनाकर वसुदेवके महलकी ओर ले चले। थोड़ी ही देरमें उन्होंने सोनेके तोरणों तथा धुजा पताकाोंसे शोभायमान, मणियों तथा दर्पणोंसे अलंकृत, कलश तथा झारियोंसे युक्त सिंह, व्याघ्र, रीछ, अष्टापद, चीता आदि जानवरोंसे भय उत्पन्न करनेवाले उस महलमें प्रवेश किया ।४४-४६। और फाटकके आगे थोड़ी दूर गलीमें जाकर सभाके बीच सिहासन पर बैठे हुए अपने पिताके पिताको शस्त्रकलामें प्रवीण हुए अनेक राजपुत्रोंके सहित देखा ।४७-४८। उनका शरीर चमकते हुए सोनेके समान था, मुख पूर्णमासीके चन्द्रमाके समान सुन्दर था, भुजायें दिग्गजोंकी सूडके समान लम्बी और बड़ी थी, छाती पर्वतके पसवाड़ेके समान विस्तीर्ण थी, बाल इन्द्रमणिके समान काले तथा
Jain Educe
interational
For Private & Personal use only
www.jaglibrary.org