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प्रद्युम्न
को चल पड़ा एक चोरस्ते पर उसने देखा कि, बहुतसे माली नानाप्रकार फूलोंको गुह रहे हैं । फूलोंका | वहां बड़ा भारी समूह देखकर प्रद्युम्नको बड़ा भारी आश्चर्य हुआ । अतएव उसने उन फूलोंके विषयमें || चरित्र
अपनी विद्यासे पूछा। उसने कहा कि सत्यभामाके पुत्र भानुकुमारके लिये ये सब फूल इक? किये गये हैं। यह सुनकर वह उन मालियोंके पास जाकर बोला;--1 १७-२०। तुम इन फूलों से मुझे थोड़ेसे सुन्दर सुन्दर फूल दे दो, जिन्हें लेकर में सत्यभामाके मन्दिरको जाऊँ ।२१। और वहां उन्हें श्राशीष देकर भोजनकी याचना करूं और जो मैं चाहता हूँ, सो पाऊँ इस समय मुझे भूख बहुत लग रही है, अतएव फूल जल्दीसे दे दो। वहां इस समय भानुकुमारके विवाहका उत्सव भी हो रहा है, इससे मेरा । मनोरथ जरूर सफल होगा उसकी बात सुनकर माली बोले, हे विप्र ! हमारे हितकारी वचन सुन। ये सब फूल सत्यभामा महारानीके पुत्रके विवाहके लिये रखे हुए हैं और विवाहके लिये ही हम इन्हें गुह रहे हैं। इनमेंसे हम एक पुष्प की पंखुड़ी भी नहीं दे सकते हैं। तुम यहां से जल्दी ही चले जाओ उनकी बातें सुनकर प्रद्युम्नकुमार बोले;-मालूम पड़ता है मृर्खिणी सत्यभामाके सबही नौकर चाकर मूर्ख हैं । ऐसा कहकर उन्होंने उन पुष्पोंको अपने हाथसे छ दिया। बस उनके छूते ही वे सब मन्दार, कुमुद, चम्पा, शतपत्र (कमल) नागकेशर, जाही, जुही, आदि के पुष्प प्राकके पुष्प होगये।
यह कौतुक करके प्रद्युम्नकुमार लीला करता हुआ आगे चला और बाजारमें पहुँचकर दुकानों की वस्तुएं उलटी सीधी करने लगा। वहां जितने प्रकारके सुगधित पदार्थ थे, तथा जितने प्रकारके अनाज रक्खे हुए थे उन सबको उसने कहींके कहीं बहुमूल्यके स्थानमें थोड़े मूल्यवाले, थोड़े मूल्यवालोंके स्थानमें बहुमूल्यवाले, बुरेके स्थानमें भले और भलेके स्थानमें बुरे इस प्रकार गटपट करदिये ॥३०-३२। हाथीके स्थानमें गधे करदिये, घोड़ेके खच्चर करदिये, कस्तूरीके स्थानमें हींग और हींगके स्थानमें उत्तम कस्तूरी करदी। जहां नमक था, वहां कपूर और जहां कपूर था, वहां नमक करदिया।
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