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प्रद्युम्न
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नानाप्रकारकी चेष्टायें करने लगा | ९८ - ३ | नगरीके बाजारकी सारी शोभाको हरण करने लगा। वहां जो नानाप्रकारके मणि थे, और रत्नोंके आभूषण थे, तथा जो हथियार, कपड़े, सुगन्धित पदार्थ, कपूर, नमक धान्यादि थे, वह उन सबको अपनी मायासे अदल बदल करता हुआ फिरने लगा । हाथी, घोड़े आदि वाहनों तथा गाय भैंसादि पशुओं में भी उसने हाथके छूनेमात्र से व्यत्यय कर दिया । र्थात हाथी घोड़ा बना दिया, गायकी भैंस बना दी, किसीका घोड़ा किसीकी दुकान पर खड़ा कर दिया और किसी की गाय किसीके यहां कर दी । इसप्रकार चेष्टा करता हुआ जब वह विप्र ऊपर को मुख किये चला जा रहा था, तब तक कुपिता स्त्रियां हजारों गालियां और सैकड़ों शाप देती हुई श्रा पहुँचीं । और शीघ्र ही उस विप्रको चारों ओर से घेर कर बकने लगीं, अरे दुष्ट, तू बावड़ीका सारा जल क्यों लेकर भाग आया । ४९ । उनके इसप्रकार बकते ही विप्र महाशयने अपने कमंडलुको तत्काल ही पृथ्वीपर पटककर फोड़ डाला, और उसमेंसे सारा जल जो बावड़ीमेंसे अपनी विद्या के बलसे भर लिया था, क्रोधके कारण छोड़ दिया । सो उसके प्रवाहसे बाजारका चौरास्ता बहने लगा। ऐसा मालूम होने लगा कि यह किसी महानदीका पूर आगया है अथवा कोई समुद्र ही यहां चलकर आ गया है। ।१०-१२। उस प्रवाहका जल दुकानोंमेंसे बहने लगा, जिससे मोती, तथा सोना रत्न आदि बहने लगे नगर के मध्य में दुकानें, घर, बगीचा, घोड़ा आदि वाहन जो कुछ थे, वे सब उस जल के प्रवाह में बहे जाने लगे ।१३-१४ । उस समय लोगोंने समझा कि यह प्रलयकाल श्रागया है, जिसमें पृथ्वी जलमग्न हो जाती है । अन्यथा समुद्र अपनी मर्यादा को क्यों छोड़ देता अर्थात् उन्होंने समझा कि, यह समुद्र ही नगर में बढ़ आया है । यह देखकर वे बावड़ीकी रक्षा करनेवाली स्त्रियां प्रलाप करती हुई अपने स्थान को चली गई और प्रद्युम्नकुमार कौतुक करके लुप्त हो गया । १५-१६ ।
इसके पश्चात् वह विनोद कुमार एक दूसरे जवान विप्रका वेष धारण करके उस नगरीमें आगे
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