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निकल पायीं । देखा तो जो कर्णविहीन थी, वह कानोंवाली होगई । जिसके एक प्रांख थी, वह दोनों दिव्य नेत्रोंवाली होगई । जो गूगी थी, वह वाचाल होगई, जिसके कुच तुचके हुए थे, वह पीनस्तनी हो गई। जो कुरूपा थी, वह रूपवती होगई, और जो जामुनके रंग जैसी अतिशय काली थी, वह गौरवर्ण हो गयी ।८८-९१। इसप्रकार जब तक वे एक दूसरेका रूप देखती हुई बाहर ठहरी तब तक विप्रने जलदीसे अपना कमंडलु वापिकामें डालकर उसका सबका सब जल भर लिया। और फिर वह बाहर निकलकर उन सबके देखते हुए चलने लगा।१२.९३। उस समय वे एक दूसरेको देखती हुई परस्परके रूप कांति तथा गुणोंकी प्रशंसा करने में लगी हुई थीं।।४। एक बोली, तेरा रूप बहुत सुन्दर हो गया है। दूसरी बोली, और तेरा कान क्या कम सुन्दर हुअा है ? तीसरी बोली, सखी, तेरे शरीरमें तो अाज जवानी आ गयी है, चौथी बोली, तेरे नेत्र तो बड़े ही कटीले और सुन्दर हो गये हैं। पांचवीं बोली, आली ! तेरे सिकड़े हुए कुच तो बड़े कठोर हो गये हैं। और जो एक सुन्दर स्त्री थी, वह बोली, बहिन तेरा स्थूल उदर तो बहुत ही कृश होगया है-कमर बहुत पतली हो गयी है ।। ५-६७। इसप्रकार वे सब विनोदके साथ परस्पर बातचीत कर रही थीं इतनेमें एक स्त्री प्यास लगनेसे जल पीनेके लिये बावड़ीमें गई । परन्तु वहां जाकर देखा, तो बावड़ी सूखी जलरहित पतिता (सीढ़ियां दीवालें वगैरह पड़ी हुई) और सूखी घाससे आच्छादित थी। उसे इस प्रकार जीर्ण शीर्ण देखकर वह बाहर निकल आयी और साथकी अन्य स्त्रियोंसे सब वृत्तांत कहकर बोली, अाज उस विप्रने अपने सबको ठग लिया। वह दुरात्मा छुप करके वापिकाका सब जल कमंडलु में भर ले गया। यह सुनकर वे सब स्त्रियां अपनी शंका मिटानेके लिये स्वयं वापिका देखने को गयीं। देखते ही वे सब क्रोधके मारे लाल नेत्र करके गाली देती हुई और इसप्रकार कहती हुई कि "अरे पापी, बोल अब तू कहां जाता है ?" विपके पीछे २ दौड़ी। परन्तु जब तक वे दौड़ी तब तक वह नगरीमें पैठकर
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