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चरित
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होकर इसीको दे देना चाहिये ऐसा विचार करके उसने भक्तिपूर्वक चरणप्रक्षालन करके उस रूपवती गुणवती कन्याको मुझे समर्पण कर दी उस कुमारीके समान न तो कोई युवती जगतमें है और न होगी इसीप्रकारसे न मेरे समान कोई वर है, और न होगा।६५-७६। अब तुम ही सोचो कि कृष्णजी के पुत्रके लिये जो उत्तम कन्या भेजी गयी थी, वही जब मुझे समर्पण करदी गई तब मैं कृष्णपुत्र हुआ कि नहीं ? फिर मुझे वापिकामें क्यों स्नान नहीं करने देती हो ? ब्राह्मणकी विनोदयुक्त बातें सुनकर वे स्त्रियां बोलीं, हे विप्र तू वृद्ध होगया है, रूप और यौवनका तुझमें नाम नहीं है, तो भी तू राजकन्यासे विवाह करनेका मनोरथ करता है ! यह नहीं समझता है कि, कहां तो यह तेरा निन्दनीय रूप और कहां वह रूप और गुणकी खानि उदधिकुमारी ।७७-७६ । इस वृद्धावस्था में भी तू जवानीमें उत्पन्न होने वाली कुटिलता तथा हँसीको नहीं छोड़ता है, यह एक बड़े भारी आश्चर्यकी बात है।८०। हे ब्राह्मण ! तूने जो कुछ अभी कहा, क्या वह सब घटित हो जाता है? अरे जरा विचार तो कर कि, कहां तो जरा से जर्जर तू और कहाँ वह कुरु राजाकी यौवनवती सुन्दर कन्या और कहां राजपुत्रोंकी रक्षामेंसे उसका भीलोंके द्वारा हरा जाना इसप्रकार असत्य वचन तु बुढ़ापेमें क्यों बोलता है, इसप्रकार हँसीके वचनोंसे रोकने पर भी आखिर वह ब्राह्मण धीरे धीरे वापिकाके जलमें पैठ गया।८१-८३। यह देखकर वह बावड़ीकी रक्षा करनेवाली स्त्रियां कुपित होकर उस ब्राह्मणको मारने लगीं। परन्तु ज्योंही उनके हाथ उस वृद्ध विपके शरीर में लगे, त्योंही उसके स्पर्श मात्रसे वे सबकी सब जो रूपरहित कुरूपा थीं, और रूपवती गुणवती बन गई।८४-८५। जब उन्होंने परस्पर अपना रूप देखा, तब वे अपकार के बदले भी विपके उपकार करनेके बर्तावकी प्रशंसा करती हुई कहने लगी, हे द्विजराज ! कुपिताओं पर भी तुमने उपकार किया है । अतएव दुनियां में तुम सरीखा दयालु और गुणी कोई नहीं है।८६८७। इसके पीछे वे सब स्त्रियां अपना रूप देखनेके लिये बड़ी प्रसन्नताके साथ वापिकामेंसे बाहर
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