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प्रथम्न
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हैं, फिर जल के स्पर्श करनेकी तो बात ही क्या है ? ।५८-६०। हे विप्र ! यह वापिका प्यारी स्त्रीके समान पापियोंको दुर्लभ है। जैसे स्त्रियोंके कुच होते हैं, वैसे इसके चक्रवाकरूपी कुच हैं, और जिस प्रकार स्त्रियोंका हंसके समान सुन्दर गमन होता है, उसी प्रकार से इसमें सुन्दर हंस गमन कर रहे हैं | ६१ | गणित यादव स्वजनजन और नगरीके लोग जिसके चरणोंकी सेवा करते हैं ऐसे श्रीकृष्णजी यदि चाहें तो अपनी स्त्रियोंके साथ इसमें स्नान कर सकते हैं अथवा सत्यभामाका पुत्र श्रीमान भानुकुमार मज्जन कर सकता है । परन्तु इन दोके सिवाय और कोई भी इसमें प्रवेश नहीं कर सकता है । फिर यहां तेरे सरीखे भिखारीकी कैसे पहुँच हो सकती है ? अतएव हे भट्ट ! अव तू यहांसे जल्द ही चला जा; नहीं तो विष्णु के सेवक तुझे मारेंगे । ६२-६४। स्त्रियों की वार्ता सुनकर विप्र वेषधारी बोला यदि कृष्णजीका पुत्र इस वापिकामें स्नान कर सकता है, तो फिर तुम मुझे क्यों स्नान नहीं करने देती हो ? क्योंकि मैं भी तो श्रीकृष्णजीका बड़ा पुत्र हूँ। यह बात मैं बिलकुल सच कहता हूँ । परन्तु यदि तुम्हें आश्चर्य होता है— कौतुक जान पड़ता है, तो मेरे वचन सुनो
हस्तिनापुर में जो कौरव कुलमें उत्पन्न हुए सुयोधन (दुर्योधन) नामके प्रसिद्ध राजा हैं उन्होंने अपनी रूपवान और गुणवान कन्याको जिसका कि नाम उदधिकुमारी है, अपनी बहुतसी सेनाके साथ भानुकुमारके साथ विवाह करने के लिये भेजी थी । सो उसे मार्ग में कौरवोंके बचाने पर भी बहुत से भी हरण करके अपने स्वामी के पास ले गये । उसे देखकर भिल्लराजने मन में सोचा कि, यह रूपवती तथा यौवन भूषित कन्या क्षत्रियों के कुलमें उत्पन्न हुयी है। अतएव यह मेरे योग्य नहीं है राज पूतके ही योग्य है ऐसा विचार करके भिल्लराजने उस प्रसिद्ध कन्याको वहीं अपनी रक्षा में रक्खा । इतने में अचानक ही पृथ्वी में भ्रमण करता हुआ मैं उसी मार्गसे उसी जगह जा पहुँचा । सो मुझे रूपवान तथा यौवनभूषित देखकर भिल्लराजने सोचा कि, यह कन्या इसीके योग्य है। अतएव निःशंक
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