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चरित्र
।४३। इसप्रकार कहते हुए हँसते हुए और तालियां बजाते हुए वे सब फिर कहने लगे, भाई ! आज तक तो ऐसा दुर्लभ कौतुक कभी नहीं देखा था। यह कोई बड़ा महानुभाव है, जो निराकुलतासे नगरीमें भ्रमण कर रहा है।४४-४५। लोगोंकी इसप्रकार बातचीत सुनते हुए प्रद्युम्नने आनन्दके साथ कुछ समय तक भ्रमण किया।
इसके पश्चात् उन्होंने कुछ दूसराही वेष धारण कर लिया और नगरीमें आगे चलकर एक सुन्दर वापिका देखी; जो चमकते हुए सोनेकी बनी हुई थी और जिसकी सीढ़ियां रत्नमई थीं।४६-४७। उस वापिका की अनेक स्त्रियां रक्षा करती थीं; और उसमें निर्मल जल भरा हुआ था। उसे देखकर कुमारने विद्यासे पूछा, मुझे बतलायो कि यह सुन्दर वापिका किसकी है ? वह बोली, यह भानुकुमारकी माता सत्यभामाकी मनोहर वापिका है। इसकी बहुतसी स्त्रियां रक्षा करती हैं। सामान्य लोगोंको यह अतिशय दुर्लभ है। विद्याके वचन सुनकर प्रद्युम्न प्रसन्न हए और तत्काल ही एक विप्रका वेष बनाकर वापिकाके पास गये। यह बनावटी विप्र योगपट्ट छत्री, दंड कुडी, और हरी दूर्वा लिये हुये था। श्रुति स्मृति और वेदका जाननेवाला था, और घुटनेतक लटकनेवाला सफेद वस्त्र पहने था, कोपीन भी पहने था, और बुढापेके कारण उसका विस्तृत तथा स्थूल शरीर कांपता था ! इसप्रकार विप्र वेदध्वनि करता हुआ वापिकाकी रखवाली करनेवाली स्त्रियोंसे बोला, हे पुत्रियों ! मेरे वचन सुनो, मैं तुमसे थोडीसी याचना करता हूँ। मुझे इस वापिकाके मनोहर जलमें स्नान कर लेने दो और इस कमंडलुको जलसे भर लेने दो। उस जलको मैं नगरीमें ले जाऊंगा और शांति के लिये किमीको देकर उससे भोजनकी याचना करूँगा।४८-५७। विपके ऐसे विनय वचन सुनकर वे स्त्रियां बोली, अरे मूर्ख ! क्या तूने विष्णु की प्राणप्यारी पट्टरानी और भानुकुमारकी माता सुप्रसिद्ध सत्यभामाका नाम नहीं सुना है ? उसी सौभाग्यशालिनीकी यह वापिका है ! दूसरे लोगोंको इसके दर्शन भी नहीं हो सकते
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