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________________ प्रद्युम्न और जटासे भयंकर दीखनेवाले उनके मुखका प्रतिविम्ब सत्यभामाने अपने मुखके समीप देखा, तब उसने अपना मुख तिरस्कारकी दृष्टि से बिगाड़ा और घमंडमें आकर यह विचारा कि मेरे चद्रमाके समान सुन्दर मुखके पास यह किस दुष्टकी विकराल छाया पड़ी है ? ४२-४५ ॥ पीठ पीछे खड़े हुए नारद मुनिने ज्यों ही सत्यभामाकी उक्त तिरस्कारको दृष्टि देखी त्यों ही उनका जी जल गया और चेहरा क्रोधसे लाल पड़ गया।सारा जगत जिसका सम्मान करता है उस नारदका अाज सत्यभामाने इस तरह अपमान किया ? इससे दुःखी होकर वे पुनः विचारने लगे कि मुझ मन्दभाग्यमें ऐसी बुद्धि कहाँ से उपजी, जो मैं सत्यभामाके गृहपर आया। मैंने उचित नहीं किया। कारण "विचारवानोंको जिसका कुलशील (स्वभाव) नहीं मालूम हो उसके घर नहीं जाना चाहिये” ॥४६-४६॥ पश्चात् चित्तमें तरह २ के संकल्प विकल्प करते हुए और कारणका विचार करते हुए वे अतःपुरसे बाहर निकल कर कैलाशगिरी पहुँचे ॥५०॥ वहाँपर चिन्ताग्रसित नारदमुनि बैठ गये और विचारने लगे अब मैं क्या करू? कहाँ जाऊँ? मेरे दुःखकी उपशांति किस प्रकार हो॥५१॥ मैं तो बिना बाजेके नाचनेवाला हूँ, फिर आज इस बाजेके शब्दोंके सुननेपर तो कहना ही क्या है ॥५२॥ जो कोई मुझे भक्तिसे मानता है, उसे मैं भी मानता हूँ और जो मुझपर क्रोध करता है, उसपर मैं भी कुपित होता हूँ । जो मूढबुद्धि मुझसे द्वषता रखता है, उसका कभी भला नहीं हो सकता ।५३। मैं अढाई द्वीपकी समस्त भूमिमें विचरता हूँ और सब मनुष्य मुझे नमस्कार करते हैं । परन्तु पापचित्तकी धारण करनेवाली सत्यभामाने मेरा तिरस्कार किया॥५४॥ मैं अब इसका क्या करू ? इसको किस प्रकार दुःसह दुःख हो ? किस प्रकार इसका मान गलित हो? कब मैं इसे दुःखित देखू॥५५॥ और किसके सन्मुख इसकी सुन्दरताका वर्णन करके उसके द्वारा इस पापिनीका हरण कराऊ? ऐसा होगा तभी इसके अंतरंगमें दुःख व्यापेगा ॥५६॥ जब नारदने Jain Educa la interational For Private & Personal Use Only www.le brary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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