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चरित्र
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इस उपाय पर गहरा विचार किया, तो उनके चित्तमें यह बात झलकी कि सत्यभामा के वियोग से श्रीप्रयुक्त कृष्णको अत्यन्त दुःख होगा और यदि श्रीकृष्ण दुःखित होंगे तो मुझे भी दुःख होगा । क्योंकि श्री - १५ कृष्ण नारायण मेरे परम मित्र हैं । अतएव ऐसा करना ठीक नहीं है । कोई दूसरी ही तदबीर मोचनी चाहिये ।५७-५८ | हाँ ! सत्यभामाको मायाविशेषसे किसी पुरुषमें आसक्त दिखादेना ही ठीक होगा। क्योंकि लोग प्राणोंसे भी प्यारी स्त्रीको यदि वह परपुरुषासक्त हो तो क्षणभर में छोड़ देते हैं । सो संसार में इसके समान कोई अच्छा उपाय नहीं है । परन्तु उन्होंने इस उपायपर ज्यों २ विचार किया त्यों २ उनके हृदय में अनेक विस्मित करनेवाले कारण उठे । ५६-६० । उन्होंने सोचा, सत्यभामा शीलवती स्त्रियों में सर है, उज्ज्वल गुणोंकी धारण करनेवाली है और कृष्णकी प्राणवल्लभा है । श्रीकृष्ण जानते हैं कि वह विशुद्धचित्तकी धारक है, इस कारण वे मेरे कहनेपर प्रतीति नहीं करेंगे । उसकी सत्यभामापर वैसी ही कृपादृष्टि बनी रहेगी और मुझसे विरक्ती हो जावेगी । ६१-६३ । फिर कभी श्रीकृष्ण मेरी बातका विश्वास नहीं करेंगे, क्योंकि "चतुरपुरुष झूठ बोलनेवालोंको दूर ही छोड़ देते हैं" । ६४ | मेरी सत्यता उठ जायेगी और इस बातकी शल्य सदाकाल मेरे हृदय में बैठी रहेगी । इसलिये मैं इसप्रकार दोनों तरफ से भ्रष्ट होना नहीं चाहता हूँ । ६५। ऐसा दृढ़विचारकर नारदजी इस युक्तिको छोड़ कोई दूसरा ही उपाय चिन्तवन करने लगे । ६६ । बहुत देरतक विचारते २ उनके चित्त में एक उत्तम उपाय उपजा । सो ठीक ही है "जब एकाग्रचित्त से विचार किया जाता है, तब चित्तके दुःखको दूर करने के लिये 'त-करण में ज्ञानकी ज्योति प्रकाशमान होती है" ।६७ | वह उपाय यह है कि स्त्रियोंको पृथ्वीतलपर सौत के जैसा दुःख न हुआ, न होगा, और न है । स्त्रियोंको जैसा सौतका दुःख होता है, विधवा अवस्थासे, दरिद्रतासे तथा अपुत्रदशासे भी नहीं होता । ६८-६६ । बारम्बार विचारनेपर भी उनकी दृष्टि सर्वोत्तम एक यही उपाय दीख पड़ा । ७० । इसीका उन्होंने दृढ संकल्प कर लिया और ढाद्वीपी
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