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________________ २२८ सर्वथा दुर्लभ है ।१४। फिर तू इस बगीचे के फलको पाकर बन्दरके खिलानेकी बात ही क्यों करता है ? हे मूर्ख ! अपने बन्दरको लेकर तू यहांसे जल्द ही चला जा।१५। यदि कहीं तुझे श्रीकृष्णमहाराज के सेवक इस समय देख लेंगे, तो हे दुराशय ! तू बहुत कष्ट उठावेगा ।१६। हम तुझे पहले ही से सचेत किये देते हैं। फिर हमारा दोष नहीं समझना। यह सुनकर चांडाल बोला; हे बनपालको ! तुम किस कारणसे इतने निष्ठुर हो गये हो, जो मेरे बन्दरको एक फल भी नहीं दे सकते हो ।१७-१८। में कहे देता हूँ कि, यदि यह बन्दर तीव्र सुधाके कारण बलपूर्वक रस्सी तोड़कर बगीचेमें घुस जावेगा, तो मेरा दोष नहीं होगा ।१६। ऐसा कहकर उस चांडालने बन्दरको तत्काल ही छोड़ दिया और हँस करके कहा, अरे क्षुद्र वनपालको ! अब देखो, मेरे इस कुपित हुए बन्दरका और मेरा भी तुम्हारे श्रीकृष्ण अथवा सत्यभामा क्या करती हैं ।२०-२१॥ ऐसा कहकर वह चपल चांडाल भी वहांसे जल्द चला गया। तब वनकी रक्षा करने वाले बन्दरको मारनेके लिए तैयार हो गये। उन्होंने लकड़ी, तलवार, परशु (फरसा) पत्थर, बाण, तोमर (गुर्ज) तथा और अनेक हथियारोंसे बन्दरको रोका। परन्तु तो भी वह बगीचकी ओर चला गया सारे वनपालोंको लांघकर बल पूर्वक भीतर घुस गया। उसके वहां पहुँचते ही हजारों बन्दर हो गये ।२२-२४। जिन्होंने क्रोधित होकर उस अच्छे २ वृक्षोंसे और लताओंसे परिपूरित वनको नष्ट भ्रष्ट कर दिया । ऐसा किया कि, वहां उसका नामनिशान भी नहीं रहने दिया । वृक्षोंको लताओंको तथा वाटिकानोंको उखाड़ उखाड़कर समुद्रमें फेंक दिया इसप्रकार सफायी करके और अपनेको कृत्य कृत्य समझकर कामदेवने चांडालका वेष छोड़कर नगरी की ओर गमन किया ।२५.२७। द्वारिकापुरीमें प्रवेश करते ही उन्होंने देखा कि, साम्हनेसे एक स्वर्णरत्न जटित रमणीय रथ आ रहा है । जिसमें अनेक दिव्य तथा मंगलस्वरूप कलश रखे हुए हैं, जो अनेक स्त्रियों करके युक्त । ___Jain Educatrinternational For Privale & Personal Use Only www.jainbrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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