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मायाका कार्य करनेमें अतिशय चतुर तथा बलवान वह प्रद्युम्नकुमार यह सब लीला करके आगे चला । सो वहां उसे एक नगरका बगीचा दिखाई दिया, जो कि नानाप्रकारके वृक्षोंसे सघन, तथा फल और पुष्पोंसे लदा हुआ था, तथा जहां पर नानाप्रकारके पक्षी रहकर विश्राम करते थे। पृथ्वीतल पर उसे देखकर कामदेवने ऐसा तर्क किया कि, यह क्या यहां स्वर्गलोकसे लाया गया है? मैंने तो ऐसा उत्तम बगीचा विद्याधरोंके नगरोंमें भी नहीं देखा था। इसप्रकार विचार करके और विस्मित होकर प्रद्युम्नने अपनी विद्यासे पूछा, मुझसे सत्य सत्य कहो कि, यह उपवन किसका है ? उसने कहा, यह वन भी तुम्हारी मातासे सदा शत्रुता रखनेवाली श्रीकृष्णजीकी प्राणप्यारी और भानुकुमारकी माता सत्यभामा रानीका है । यह पृथ्वीतलमें बहुत प्रसिद्ध बगीचा है। अब आपको रुचता हो, सो करें। विद्याके वचन सुनकर प्रद्युम्नकुमारने उसी समय विद्याके बलसे एक सुन्दर बन्दर बना लिया, जिसकी बड़ी पूंछ, बड़ा शरीर, विकराल मुख, सफेद दांत, पतली कमर, चपल नेत्र, चंचल अंग, और असुहावनी आवाज थी, और आप चांडालका रूप धारण करके बन्दरको साथमें लिये हुए उस बगीचे के पास आये ।।८-४०७। सो वहां आकर बगीचेके रक्षकोंसे बोले, मेरी एक बात सुनो-मेरा यह बन्दरका बच्चा भूखके मारे बहतही व्याकुल हो रहा है, और इस बनका एक फल खानेकी इच्छा करता है।८-९। इसलिये इसे उत्तम फल खानेके लिये दे दो । उसे खाकर यह संतुष्ट हो जायेगा। बल आ जानेसे मैं इसे इस श्रेष्ठ नगरमें ले जाऊँगा, और इसकी क्रीड़ासे सब लोगोंको रंजायमान करूंगा।१०-११। मेरी यही जीविका है, इसीसे मैं अपना पेट पालता हूँ। अतएव एक अच्छा फल इसे दे दो।१२। यह सुनकर वे वनपालबोले, क्या तुझे वातरोग होगया है, अथवा कोई पिशाच लग गया है जो बन्दरको फल खिलानेकी इच्छा करता है ।१३। फल और पुष्पोंसे लदा हुआ यह बगीचा सत्यभामा महाराणी का है। इससे स्पष्ट है कि, पुण्यहीन अधम पुरुषोंके लिये यह
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