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प्रद्युम्न
चरित्र
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वहां भी घोड़े को सुन्दर गतिसे चलाने लगा। उस समय भानुकुमारादि राजपुत्र बड़े विनोदके साथ ऊपरको मुँह किये उसे देखते थे। परन्तु थोड़ीही देरमें वह मायापी बुड्ढा अर्थात् प्रद्युम्नकुमार अपने घोड़े समेत आकाशमें ही अदृश्य होगया ।६६-६९।
इसप्रकारसे भानुकुमारादि सबको चमत्कृत करके और “यह दैत्य था, अथवा कोई विद्याधर था" ऐसी चिंता उत्पन्न करके तथा अाश्चर्ययुक्त करके प्रद्युम्नकुमार वहांसे चल पड़ा। आगे उसे सत्यभामाका सुन्दर वन दिखलाई दिया ७०-७१। उसे देखकर प्रद्युम्नने कर्णपिशाचा विद्यासे पूछा, हे विद्या मुझे बतला कि यह वन किसका है ? तब वह बोली, हे नाथ ! यह सत्यभामा महाराणीका बगीचा है ।७२ ७३। यह जानकर प्रद्युम्नकुमार विद्याके प्रभावसे सोलह वर्षका युवा बन गया। और पाँच सात बड़े २ किन्तु दुर्बल घोड़ोंको लेकर घुड़सवारके रूपमें बगीचे के समीप जाकर वहांकी रखवारी करनेवालोंसे बोला; मैं इसी बगीचे की प्राशासे बहुत दूर देशसे आया हूँ। मेरे ये घोड़े थकावट से दुर्बल हो गये हैं । सो इन्हें तुम अपने इस सुन्दर वनमें कुछ देर तक इच्छानुसार चर लेने दो। जिससे ये कुछ सबल होकर बिकनेके योग्य हो जावें ।७४-७७। उसको बातें सुनकर वनकी रक्षा करने वाले बोले; तुझे वातरोग तो नहीं हो गया है ? अथवा कोई पिशाच तो नहीं लग गया है ? अथवा तू किसीके द्वारा लूटा, छला वा ठगाया तो नहीं गया है, जिससे विभ्रान्तचित्त होकर ऐसे प्राणघातक तथा निंदनीय वचन कहता है ।७८-७६। क्या तू नहीं जानता है कि यह भानुकुमारकी माता सत्यभामा महाराणीका बगीचा है, पुण्यहीन प्राणियोंको जिसके दर्शन भी नहीं हो सकते हैं। जो बन नागबेलसे रमणीय और लता मंडपोंसे सुन्दर हो रहा है, और जहां सत्यभामाके प्रसादसे केवल उसका पुत्र रमण करनेके लिये आसकता है, दूसरा कोई नहीं आ सकता है, उसमें तू अपने घोड़े को चरनेके लिये ले जानेकी इच्छा करता है ।८०.८२। यह सुनकर प्रद्युम्नकुमार बोले; हे वनपालको ! यह तो
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