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________________ प्रयम्न चरित इसमें बड़ी ही व्यथा होती है । ४८-४६। और हे मूर्ख भानुकुमार ! तुम ऐसे दुष्टचित्तोंको धन और वस्त्रादिक क्यों देते हो ? ये इसके योग्य नहीं हैं ।५०। इसप्रकार विलाप करता हुआ वह बुडढा भानुकुमारसे फिर बोला, में अपने घोड़े चलानेकी चतुराई तुम्हें कैसे दिखलाऊ ? मैं फिर भी चाहता हूँ कि यदि तुम्हारे ये बेचारे सुभट मुझे देवयोगसे घोड़ेपर सवार करा सकें, तो मैं अपना कौशल्य तुम्हारे आगे करके दिखाऊँ । ५१-५३। यह सुनकर भानुकुमारने अपने सुभटोंसे कहा, मेरे सामने जो शूरवीर हैं, उन सबको एकत्र होकर इस घमण्डी बुड्ढेको घोड़े पर बिठा देना चाहिये। जिससे में इसकी अश्वकुशलता देख लू।५४-५५। भानुकुमारके वचन सुनकर जितने बलवान सुभट थे वे सबके सब वृद्धके पास फिर गये ।५६। और उसे उठाकर घोड़े पर रखने लगे। सो ऊपर जाकर उसी प्रकारसे वह फिर भी उन योद्धाओंके ऊपर गिर पड़ा। उसके बड़े भारी शरीरके पड़नेसे वे बेचारे फिर पिचल गए। तब आप पहलेकी तरह फिर जोर जोरसे चिल्लाकर कहने लगा, हे भानुकुमार तेरे ये शूरवीर झूठे हैं । इन नीचोंने मुझे घोड़ेपर आरोहण नहीं कराया। अब यदि तू स्वयं अपने सुभटोंके साथ मुझे घोड़ेपर चढ़ादे तो कौतुक दिखलाऊँ ।५७.६०। इस वचनसे संतुष्ट होकर नारायणका पुत्र अपने राजपुत्रोंके साथ स्वयं उठा, और उस बुड्ढे को उठाने लगा सो उम समय तो वह विल्कुल हलका होगया। परन्तु ज्योंही वे सब उसे घोड़े की जीन के पास ले गये, त्योंही खूब भारी होगया । इसलिये उन सबको नीचे गिराकर आप ऊपरसे पड़ गया। और उन सबको विशेषकर भानुकुमारको कुचल करके नानाप्रकारका प्रलाप करता हुआ उठ बैठा, और पड़े हुए भानुकुमारकी छातीपर पैर रखके तत्काल हो घोड़े पर चढ़कर उसे चलाने लगा।६१-६५। हर्षसे पूरित होकर देखते हुए राजपुत्रोंके तथा भानुकुमारके आगे उस मनोहर घोड़े को वह एक क्षणभर मनोज्ञ गतिसे चलाकर तथा अपनी अश्वशिक्षाकी कुशलता दिखलाकर आकाशमें उड़ गया। और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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