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________________ चरित्र शरीर जरासे जर्जर और शिथिल हो रहा है ।३१-३३। यदि तू स्वयं घोड़े को चला सकता, तो दूसरोंपर हँसता। अन्यथा जब तू स्वयं असमर्थ है, तब क्यों हँसता है ? संसारमें दूसरोंको दोष लमानेवाले अनेक हैं, परन्तु जो स्वयं दोषको नष्ट करने में समर्थ हैं, ऐसे लोग बहत थोड़े हैं ।३४. ३५। यह सुनकर बुड्ढा बोला, हे सत्यभामाके पुत्र ! इस समय मुझमें सचमुच घोड़ा चलानेकी सामर्थ्य नहीं है । यदि इस वृद्धावस्थामें भी मुझमें घोड़ा चलानेकी शक्ति होती, तो यह बहुमूल्य घोड़ा तुम्हें क्यों देना चाहता ।३६.३७। हां यदि तुम्हारे ये सब राजपुत्र दैवयोगसे मुझे अपनी भुजाओंसे उठाकर घोड़ेपर बैठा सकें, तो अवश्य ही में अपना सारा कौशल्य तुम्हारे आगे दिखला सकता हूँ और इस उत्तम घोड़ेको शीघ्रतासे चला सकता हूँ ।३८-३६। इतना ही नहीं अपनी अश्वकलासे मैं तुम्हें बल्कि तुम्हारे पिता श्रीकृष्णजीको भी पराजित कर सकता हूँ । इस विषय में और अधिक कहनेसे क्या लाभ है।४०। उसके इस प्रकार घमण्डसे भरे हुए वचन सुनकर भानुकुमार प्रसन्न होकर अपने सुभटोंसे इसप्रकार रमणीय वचन बोला कि हे शूरवीरो ! इस वृद्ध को अपनी भुजाओंसे पकड़कर घोड़ेपर बैठा दो। मैं इसके घोड़े चलानेका कौतुक देखूगा । अाज्ञा पाते ही वे सब सुभट बुड्ढेके पास गये और उसे पृथ्वीपरसे उठाने लगे। ज्योंही उन्होंने उठाकर उसे घोड़ेपर रखना चाहा त्योंही मायासे अपना शरीर शिथिल (वजनदार) कर दिया। जिससे वह भारी शरीर वाला बुड्ढा सब शूरवीरोंका मर्दन करके और उनकी कुहनियोंको दांतोंको और मस्तकोंको चोट पहुँचाकरके जमीनपर गिर पड़ा।४१. ४५। उसकी इस लीलासे कितने ही सुभटोंकी चेष्टा बिगड़ गई, कितने ही मूछित हो गये, कितने ही कांपते हुए जमीनमें लोटने लगे, और कितने ही हाथोंपर मस्तक रख कर बैठ गये ।४६-४७। सुभटों की ऐसी दुर्दशा करके वह घोड़ेवाला स्वयं लम्बी २ सांसें लेने लगा और झूठमूठ ढोंग बनाकर रोने लगा। हाय ! मुझे इन विनयहीन, दुष्ट और मुखों ने पटक दिया। हाय ! मेरी तो कमर टूट गई। Jain Educe international For Private & Personal Use Only www. brary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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