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प्रगाम्न
चस्त्रि
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रंजायमान कर दिया ।१६-१८। इसके थोड़ी ही देर पीछे उसने अपनी मनोहर गतिको वेगसंयुक्त बनाई अर्थात् जल्दी चलना शुरू कर दिया। इतनी जल्दी कि, भानुकुमारके सारे वस्त्र और प्राभरण पृथ्वी पर गिर पड़े और रोकने पर भी अर्थात् लगाम डांटने पर भी वह नहीं ठहरा । आखिर उसने अपने विलक्षण वेगसे उस राजकमारको पृथ्वीपर पटक ही दिया ।१६-२०। और आप बड़ी विनयके साथ बुड्ढेके समीप जाकर खड़ा हो गया । उस समय उसमें जरा भी चंचलता नहीं मालूम पड़ती थी।२१॥ अनेक राजपुत्रोंसे सेवित राजकुमारको घोड़ा पटक अाया, यह देखकर बुड्ढा खूब खिलखिलाकर हँसा। और ताली बजाकर बोला, हे कुमार ! मेरे मनोहर वचन सुनो ।२२ २३। पृथ्वीमंडलमें तुम्हारी घोड़े की शिक्षाके सम्बन्धमें जैसी विपुल कीति फैल रही है, इस समय वैसी किसीकी भी नहीं है । अर्थात् घोड़ेकी सवारीमें जैसे आप प्रवीण हैं वैसा और कोई नहीं है । आपकी कीर्ति सुनकर मैं घोड़ा लेकर
आपके पास आया था २४-२५। परन्तु अब तुम्हें देखकर मैंने जान लिया कि, घोड़े का चलाना तथा घोड़े पर सवार होना तुम जरा भी नहीं जानते हो । हे कृष्णपुत्र ! तुम अश्वसंचालनकी शिक्षामें बिलकुल मूर्ख हो । ऐसी निपुणतासे में सच कहता हूँ कि, तुम राज्यका उपभोग नहीं कर सकोगे।२६२७। किसी अश्वशिक्षाके जाननेवालेको रखकर तुम्हें उसके पास घोड़े चलानेकी सम्पूर्ण कलायें सीखना चाहिये ।२८। पहले मैंने लोगों के मुंहसे सुना था कि, सत्यभामाका पुत्र घोड़े की शिक्षाको नहीं जानता है, सो अब निश्चय हो गया ।२९। राजपुत्रकी परीक्षा करते समय पहले उसकी अश्वकला ही देखी जाती है। फिर कहो, जो इस कलाको नहीं जानता है, उसकी निर्मल कीति कैसे फैल सकती है ? ।३०। यह सुनकर वहां जितने लोग थे, वे सब मुँहको ढांक ढांक कर हँसने लगे। बुड्ढे ने भी ताली बजाकर उच्चहास्य किया। यह देख भानुकुमार अतिशय क्रोधित होकर बोला:--अरे मूर्ख बुड्ढे ! तू व्यर्थ क्यों हँसता है ? तू सर्व कर्मरहित है, अर्थात् तुझसे तो कुछ भी नहीं हो सकता है । तेरा
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