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चरित्र
आकाशमें चलने की शक्ति कहाँसे आ गई ? यह विकराल अाकारका धारण करनेवाला कोई देव है, अथवा कोई दैत्य, राक्षस वा विद्याधरका पुत्र है। और यह भी तो बताइये कि, आप जैसे मुनिके साथ इस पापीका संग कैसे हो गया ? कहीं मेरे समान आपको भी तो इसने कैद नहीं करा है ? ।४२-४६। उसके इसप्रकार कहने पर जब नारदजीने देखा कि, अब यह मरनेका निश्चय कर चुकी है, तब वे बोले, बेटी ! तू हर्षके स्थानमें शोक क्यों करती है ? उदधिकुमारीने पूछा, हे तात ! कैसा हर्ष ? यहाँ काहे का हर्ष है ? नारदने उत्तर दिया, अपने माता पिताका पुण्यस्वरूप यह वही रुक्मिणीका पुत्र है, जो तेरा पति होने वाला था। विद्याधरोंके देशसे चलकर यह तेरे लिये ही यहां आया है। इसलिये हे बेटी अब तू शोक को छोड़दे, और पुण्यके फलसे प्राप्त हुए हर्षको धारण कर ।४७.५०। सुन्दरीको इसप्रकार आश्वासन देकर अर्थात् समझाकर नारदजी प्रद्युम्नकुमारसे बोले, क्रीड़ा हमेशा अच्छी नहीं लगती है, इसी प्रकारसे हँसीकरना भी सदा प्रशंसनीय नहीं होता है ।५१। इसलिये अब कौतुक और हँसीको छोड़कर अपने मनोहर रूपको दिखलाकर हे मनोभव ! इसके बहुत समयसे खेदखिन्न हुए नेत्रोंको शांत कर—सफल कर ५२।।
नारदजीके वचन सुनकर प्रद्युम्नकुमारने सम्पूर्ण लोगोंके नेत्रोंको आनन्द करनेवाला अपना असली रूप धारण कर लिया ५३। जो नानाप्रकारके रत्नोंके बने हुए मुकटसे, और पुष्पमालासे, सुगन्धित वस्तुओंके लेपसे तथा दैदीप्यमान सोनेके कुण्डलोंसे शोभित था ।५४। हार बाजूबन्द, कड़े
आदि भूषणोंसे मंडित था और कमलके समान नेत्रोंसे मनोहर था। उनके उस रूपकी भाभा ददीप्य मान सुवर्ण पर्वतके समान थी, वक्षस्थल कठोर था बड़ी २ भुजायें हाथीके समान हाथीकी सूडके समान गोल और पुष्ट थी। भौंरोंकी राशिके समान काले और चिकने केश थे इसप्रकारसे कामकुमार सर्व लक्षणोंसे लक्षित और सम्पूर्ण आभूषणोंसे भूषित, स्थिर, शान्तमुख, धीर भयरहित तथा संसार
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