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________________ प्रद्युम्न २११ पुत्र पैदा हुए ।५४-५५ । राजा धृतराष्ट्र और पांडुने अपने पुत्रोंको यौवनयुक्त देखकर उनमें से दो बड़े पुत्रों को अर्थात् दुर्योधन और युधिष्टिरको राज्य सौंप दिया । परन्तु दुर्योधनने थोड़े ही दिनमें अपनी बुद्धि की चतुराई से पांडुके पुत्रोंसे राज्य छीन लिया और आप अकेला ही राज्य करने लगा । इस समय राजा दुर्योधन ही राज्य करता है । उसके एक उदधिकुमारी नामकी पुत्री है। वह रूपवती है, सच्चरित्रा है, गुणवती है, लावण्ययुक्त है, मधुर वचन बोलने वाली है, विद्यावती है और विनयवती है । उसके शरीर में तथा नेत्रों में ऐसी आभा है कि उसका एक मण्डल सरीखा बना रहता है । उनका वृत्तांत तथा चरित्र लोक में प्रसिद्ध तथा सुन्दर है । वह लीला से ललित है, और कलाओं के समूह से युक्त है । उसकी प्रशंसा कौन कर सकता है ? बृहस्पति से भी नहीं हो सकती है । ५५-६०। वह उदधिकुमारी जब गर्भ में थी, और तुम उत्पन्न नहीं हुए थे तब ही राजा दुर्योधन ने उसे तुम्हारे लिये देना कर दी थी परन्तु तुम्हें जब उत्पन्न होते ही वह असुर हरण कर ले गया । ६१-६२ । और तुम्हारे जीते रहने की किंवदन्ती भी यहां कहीं सुनाई नहीं पड़ी, तब अब उस उदधिकुमारीको उसके पिताने तुम्हारे छोटे भाई को देने के लिये भेजी है । उसीके साथ में यह चतुरंग सेना आई है । ६३ । नारदके इसप्रकारके वचनोंसे संतुष्ट होकर प्रद्युम्न कुमार ने अपनी प्राणवल्लभाको देखने की इच्छा की। उसको देखने की उन्हें बड़ी उत्सुकता हुई । वे नारदजीसे बोले हे तात! मुझे इस बड़ी भारी सेनाको देखने की उत्कंठा है, सो आप आज्ञा देवें, तो मैं जाकर देख ऊँ । यह सुनकर नारदजी मुसकुराके बोले, वत्स ! तुम बहुत चपल हो, वहां जाकर चपलता करोगे, इसलिये में नहीं जाने देता। वहां जाने से कुछ न कुछ विघ्न खड़ा हो जावेगा । ६४-६७ | प्रद्युम्नने कहा, मैं चपलता नहीं करूंगा, देख कर जल्द ही आपके पास लौट आऊंगा । ६८ । नारदजीने कहा " तो जाओ और कौतुकसे सेना को देख Jain Education International For Private & Personal Use Only चरित्र www.gelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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