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चरित्र
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चले गये ।४३। और इस प्रकार कार्य सिद्ध हो जाने पर उन्होंने वहांसे जाते ही वह अंगूठी जिस | विद्याधरसे ली थी, उसी को दे दी।
इधर कुन्तीको बहुतसी सखियोंके साथ रहते हुए महीने बीतने लगे। जब छः महीने हो गये, और गर्भकी वृद्धि हो गई अर्थात् जब गर्भ दिखाई देने लगा, तब उन सखियोंने उसकी सब चेष्टायें मातासे जाकर कह दी।४४.४५। और माताने अपने पतिसे उसका वृत्तान्त कह दिया। तब राजाने लज्जित होकर रानीसे कहा, कि तू उससे जाकर पूछ कि, हे दुष्टा ! तूने यह गर्भ किसका धारण किया है ? रानीने जब लड़कीसे पूछा, तब उसने कहा “माता आप अपना मुख मलिन न करें, यहां स्वयं पांडुकुमार आये थे। और उन्होंने मेरे ही साथ सहवास किया था ।४६-४८। इस बातकी साक्षीस्वरूप एक कड़ा मेरे पास है।" ऐसा कहकर कुन्तीने तत्काल ही कड़ा निकालकर दिखला दिया।४८। रानी उस कड़ेको लेकर महाराजके पास चली गई । सो उन्होंने कड़ा देखा, और वृत्तान्त जान लिया, तब चिन्ता छोड़ दी। उन्हें जो दुःख हुअा था, वह नहीं रहा ।४६।
क्रमक्रमसे जब पूरे महीने हो गये, गर्भ पूर्ण हो गया, तब कुन्ती के एक सम्पूर्ण लक्षणोंवाला पुत्र उत्पन्न हुा ।५०। परन्तु कलंकके भयसे उस राजाने उसे घरमें नहीं रक्खा। एक पेटीमें रखकर यमुनानदी में बहा दिया ।५१। और फिर नानाप्रकारके उत्सव करके अपनी वह पुत्री (कुन्ती) पांडुकुमार को ही ब्याह दी ५२॥
इसके पश्चात् उसके युधिष्ठिरादि तीन विचक्षण पुत्र हुए। और पहले जो पुत्र कन्यावस्थामें जना था, वह कर्ण नामसे प्रगट हुआ। वह पृथ्वीमें बहुत प्रसिद्ध हुआ।५३। राजा धृतने कुछ समयके पीछे अपने धृतराष्ट्र और पांडुपुत्रको राज्य देकर जिनेन्द्र भगवानको दीक्षा ले ली। उनके साथ उनके छोटे भाई विदुर भी मुनि हो गये। राजा धृतराष्ट्र के दुर्योधनादि अतिशय विख्यात सो
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