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उसने उसी समय पारावतका (कबूतरका) रूप बनाया और शीघ्र ही उड़कर वहाँ पहुँचा, जहाँ वह श्रेष्ठ ।। गम्न कन्या रहती थी। फिर गवाक्षमेंसे (खिड़कीमेंसे) महलके भीतर जाकर उसने रातको कामदेवका रूप चरित्र २०६ धारण किया और वहां गया, जहां कुन्ती अकेली सो रही थी। उसकी निद्रा भंग करके जब वह
मिला, तब कुन्ती अपने सम्मुख एक अपूर्व पुरुषको देखकर एकाएक कांप गई और बोली, तुम कौन हो जो रातको मेरे महलमें आये हो ? ।३०-३२। पांडुकुमार मुस्कराके बोले, प्यारी ! तुम व्यर्थ भय मत करो, मैं तुम्हारा प्यारा पांडुकुमार हूँ।३३। तब वह उसके रूपको देखकर बोली, मैंने तो सुना है कि, पांडुकुमार कोढ़ी हैं। परन्तु तुम तो वैसे नहीं हो। पांडुने उत्तर दिया, वह बात झूठी है। किसी दुष्टने तुमसे व्यर्थ ही कह दी होगी। हे सुन्दरी ! मेरा ऐसा ही उत्कृष्ट शरीर है। यह सुनकर कुन्ती पांडुके रूपपाशमें उलझ गई। और तब पांडुकुमारने उस कल्याणरूपा कामिनीके साथ जिसका कि नवीन संगमके समय भयसे शरीर कम्पित होता था, संतुष्ट होकर रमण किया।३४-३६१ जिसके रूप
और गुणोंसे पांडुकुमार मोहित हो गया। और इसीप्रकारसे वह कामयुक्त कामिनी भी पांडके गुणोंसे बँध गई ।३७। उन दोनोंका ऐसा सघन स्नेह हो गया कि, पांडुकुमार वहां प्रेमपूरित होकर सात दिन तक रहा।३८। श्राठवें दिन जब वह जानेको इच्छा करने लगा, तब विचक्षणा कुन्ती विनय करके बोली, हे महाभाग आप तो जानेके लिये तैयार हैं और मैं आपसे कुछ कहना चाहती थी, सो लज्जा से व्याकुल होकर कह नहीं सकती हूं ॥३६-४०। यह सुनकर पांडने कहा, हे प्रिये ! जो कहना चाहती हो, सो कहो । अपने स्वामीसे क्या लज्जा ? तब वह अपने मनकी बात कहने लगी, हे नाथ जिसदिन
आप यहां मुझपर कृपा करके आये थे, उस दिन मेरा स्त्रीधर्मका चौथा दिन था, अर्थात् रजस्वला होकर मैंने उस दिन चतुर्थस्नान किया था।४१-४२। सो यदि कहीं मैं गर्भवती होगई तो बतलाइये क्या करूंगी। यह सुनकर पांडुकुमार उसे अपने हाथमेंका एक कड़ा (निशानी) देकर आनन्दके साथ
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