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पद्यन्न
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तरहसे सुनकर पांडुकुमार दुःखसे अतिशय पीड़ित हुआ । उसे नगरमें वनमें कहीं भी चैन नहीं रहा । रातदिन चिंतित रहने लगा ।१४-१५। एक दिन वह अकेला वनमें गया हुआ था सो वहां उसे एक केलेके बगीचे में फूलोंकी शय्या दिखलाई दी | १६ | जो सम्भोग करने के कारण किसी दम्पति के (पुरुष स्त्री) द्वारा दली मली गई थी। उसे देखकर वह दुःखी पांडुकुमार सोचने लगा, अवश्य ही यहांपर किसी पुण्यवानने अपनी प्रिया के साथ रमण किया है। मैं बड़ा पुण्यहीन हूँ, जो मुझे मेरी प्यारी नहीं मिली। इस प्रकार एक ठंडी सांस लेकर वह वहीं पर बैठ गया, और उस शय्याको दुःखके साथ बारम्बार देखने लगा | जिससे उसे समीप ही पड़ी हुई एक मुद्रिका (मुदरी) दिखायी दी । तब उसे उसने उठा कर अपनी उंगली में पहनली । और फिर वह उस विजन वनमें यहां वहां भ्रमण करने लगा ।१७-२०। इतने में उस मुद्रिका का स्वामी विद्याधर व्यग्रचित्त हुआ उस शय्या के देखने के लिये प्राया । परन्तु जब उसे शय्यापर कुछ भी दिखाई नहीं दिया, तब उसका मुँह मलिन पड़ गया ! उसे चिंतित देखकर पांडुने पूछा, आपका मुँह काला क्यों पड़ गया है ? तब उसने कहा, मेरी एक मुद्रिका खोई है । २१-२३|यह सुनकर पांडुकुमारने अपनी अंगुलीमेंसे मुद्रिका निकालकर उसे दिखाई । विद्याधर बोला, यदि आप दे दें, तो यह मेरी ही है | २४| तब पांडुने वह उत्तम मुद्रिका तत्काल ही दे दी । उसके साहसको तथा सच्चेपनको देखकर विद्याधरने भी पूछा हे मित्र ! तुम भी कहो कि, इस समय तुम्हारा मुख क्यों मलिन है ? तब पांडुकुमारने अपनी सारी दुःख कथा उसे सुनादी । २५ २६ । मित्रका दुःख सुनकर विद्याधर ने वह मुद्रिका पांडुकुमारको ही दे दी, और कप, मेरी यह मुद्रिका कामरूपदा है, अर्थात् इसके प्रभाव से इच्छानुसार रूप प्राप्त हो जाता है। सो इसके द्वारा तुम अपना कार्य कर लेना, अर्थात् अपने मनोरथको मफल कर लेना | २७-२८ । फिर जब तुम्हारा कार्य सफल हो जावे, तब यह मुद्रिका मेरी मुझको दे देना | पांडुकुमारने वह मुद्रिका ले ली। उसे पाकर वह हर्ष से परिपूर्ण होगया |२९|
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