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कितनी ही दूर निकल गये।९७। इतने में उन्होंने एक जगह बड़ी भारी चतुरंग सेना देखी, जिसमें हजारों राजा अगनित घोड़े, रथ और पयादे थे, जो वादित्रोंके शब्दोंमे शब्दायमान हो रही थी। । चरित्र चक्रवर्तीको सेनाके समान उस सेनाको देखकर प्रद्युम्नकुमार बड़े आश्चर्यकं माथ नारदजीसे बोले ।।८. १००। हे नाथ ! पृथ्वीतल पर यह किस राजाका शिविर पड़ा हुआ है ? ऐसा शिविर तो मैंने कभी विद्याधरोंके देशमें नहीं देखा । तव नारदजी मुसकराते हुए बोले, तुम इसीके लिये यहां पर लाये गये हो । इसका विस्तृत वृत्तान्त इस प्रकार है कि, १.२॥
इस समय हस्तिनापुरमें कुरुवंशी राजा दुर्योधन जो गुणोंका समुद्र है, राज्य करता है। श्रादि. नाथ भगवानके समयमें जो दानकी परिपाटी चलानेवाला विख्यात और प्रजाका प्यारा श्रेयांस नामका राजा हुअा है, वह इसी वंशमें हुअा है ।३.४। उस श्रेयांस राजाके वंशका भूषणस्वरूप एक कुरु नामका राजा हुआ, जिसके नामसे कुरुवंश पृथ्वीमें अतिशय विख्यात हुा ।५) उसके पीछे उस वंशमें क्रमसे हजारों राजा हुए । सो अनेक राजाओं के बीत जाने पर उस हस्तिनागपुर नगरमें पृथ्वी मडलमें विख्यात एक धृत नामका राजा हुआ। इस राजाके तीन रानियां थीं। पहली गुणरूपादियुक्त अम्बा, दूसरी अम्बिका और तीसरी अम्बालिका । उक्त तीनों रानियोंके उदरसे राजा धृतके क्रमसे तीन पुत्र हुए, पहला धृतराष्ट्र, दूसरा पाण्डु और तीमरा विदुर । ये तीनों ही बड़े ही कीर्तिवान हुए। इनमें से पहले धृतराष्ट्रको गांधारी नामकी प्यारी रानी प्राप्त हुई। दूसरे पाण्डुकी कथा पुराणोंमें भली भांति निरूपण की गई है, तो भी हे वत्स ! मैं तुम्हें संक्षेपमें सुनाता हूँ।६.११॥
पहले राजा धृतने पांडुकुमारके लिये सूर्यपुरके राजा अन्धकवृष्टिकी कन्या कुन्ती मांगी थी। परन्तु पीछेसे किसी पापीने उससे जाके कह दिया कि, पांडुकुमारका शरीर सफेद काढ़से नष्ट हो गया है ।१२-१३। राजाने जब यह सुना, तब उसने कन्या देनेसे इन्कार कर दिया । इस वृत्तांतको किसी
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