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हैं; पीठकी रीड (वंश) बड़ी ऊंची और पुष्ट है । ये पानी पीनेके लिये जलाशयोंके समीप पाये हैं।। हाथियों को देखकर कुमार बहुत सन्तुष्ट हुए ।८५-८६। थोड़ी दूर और चलकर नारदजीने कहा, हे यां कुमार ! तुम्हारे आगे यह एक विशाल शरीर (बड़ा) गुरुवंश (बड़े २ बांसों वाला) तथा ऊंचे कंधोंवाला (ऊंचे शिखरोंवाला) अनन्त खगियोंसे (गेंडोंसे) सेवित, स्थिररूप, उन्नतिशाली और भूधरोंका (पर्वतों का) पति महापर्वत शोभित हो रहा है। यह तुम्हारे समान प्राकृतिको धारण करने वाला है। अर्थात् जैसा वह पर्वत है, उसी प्रकारसे तुम भी विशाल शरीर, गुरुवंश (उच्चकुलसे उत्पन्न) उच्चकंघ (स्थूल कंधवाले) अनेक खड्गी अर्थात् खद्ग धारण करने वाले शूरवीरोंसे सेवित, स्थिरचित्त, उन्नतिशील
और भूधरों अर्थात् राजाओंके पति हो। प्रद्युम्नकुमार नारदके कहे अनुसार उस पर्वतको देखकर प्रसन्न हुये ।८७-८६। उसके पीछे थोड़ी दूर चलकर नारदजी बोले, देखो, यह एक नदी तुम्हारे साम्हने वह रही है ।९०। इसमें किनारेपर लगे हुए बड़े २ वृक्षोंके फूलोंसे जो परागकी धूल झड़ी है, उसकी सुगन्धिसे सुगन्धित हुअा जल बह रहा है। हंस और मारस पक्षियोंसे शोभित अथाह और मगरमच्छोंमे भरी हुई उस गंगानदीके समान नदीको देखकर प्रद्युम्नका वित्त प्रसन्न हुा ।९१-६२। थोड़ी ही दूर चलनेपर गंगानदी भी दिखलाई दो। उमे देख कर नारदजीने कहा, हे मनोभव देखो, यह सम्पूर्ण पृथ्वीमें प्रसिद्ध गंगा नामकी नदी है। जिसका जल अतिशय निर्मल है, जो पवित्र और पाप को नाश करने वाली है। जिसके बड़े २ किनारों के पृष्ठ पर देवकन्यायें निवास करती हैं । और जो तटस्थित किन्नरियोंके मनोहर गीतोंसे तथा हंस और मारस पक्षियों के शब्दोंसे तीनों लोकोंको वशी. भूत करती है ।६३-६५। इसप्रकारकी सुविस्तृत गंगानदीको देखकर कामकुमारको बड़ी भारी प्रसन्नता हुई उन्होंने कहा कि-"अहो यह गंगानदी बड़ी ही रमणीक है" १९६।
इस प्रकार बड़े भारी को तुमके साथ उस अाश्चर्ययुक्त उत्तम पृथ्वीको देखते हुए वे दोनों
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