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बघुम्न
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देखते हुए जब वे आकाशरूपी आंगन में चले जा रहे थे, तब नारदजीने वृक्षोंके समूह से मघन खदिरा नामकी टवी देखी जो कि तक्षक नामके पर्वत पर थी और जिसमें बालक प्रद्युम्नको उसके वैदैत्यने बड़ी भारी शिलाके तले दबा दिया था, 1६८-७१ । जिस समय नारदमुनिने उक्त टवी प्रद्युम्नको दिखाई, उस समय वे बहुत आनन्दित हुए । ७२ । पश्चार वह विमान जो कि पृथ्वीपर अतिशय दुर्लभ था, वेगसे चलने लगा। थोड़ी देर में नारद ने कहा, हे कुमार ! अपने विमान के कर्ण - प्रिय घंटों के मधुर शब्द सुनकर देखो, ये हिरणियों के समूह अपने चंचल बच्चों सहित ऊँचा मुख किये हुए खड़े हैं, मनोहर क्रीड़ा कर रहे हैं, कभी चलने लग जाते हैं, और कभी बैठ जाते हैं, बड़े ही सुन्दर हैं ।७३-७५ | इन्हें इसप्रकारकी क्रीड़ा करते देखकर मन क्यों न हरा जाय ? प्रद्युम्न को उन्हें देखनेसे प्रसन्नता हुई ।७६। आगे चलकर नारदजीने कहा, हे कामदेव ! इस मनके चोरनेवाले प्रसन्न मुख, और रमणीय पंखें फैलाकर नृत्य करते हुए तथा मनोहर शब्द करते हुए ग्रासक्त-चित्त मयूरको देखो, यह कैसा धीरे २ पैर रखता है । इसके साथ भौरों के झुण्ड भी गूंजते हुए ऐसे मालूम पड़ते हैं, जैसे गीत गा रहे हों । मयूरको देखकर कामकुमार बहुत प्रसन्न हुए । ७७-७६ | तदनंतर उस शीघ्रगामी विमान के द्वारा कुछ दूर आगे चलकर नारदने फिर कहा, प्रद्युम्न इस रौद्रमूर्ति किन्तु मनको हरण करनेवाले शार्दूलको (सिंहको ) भी देखो, जो अपने विकट नादसे पर्वतको कम्पित कर रहा है,
अपनी पूंछ पकी घोरसे मोड़कर ऊंची उठाये हुए है। यह अपनी दाढ़ोंसे तथा नखों से बड़े २ हाथियों को विदारण करने से और उनका मांस भक्षण करने से कैसा भयंकर दिखता है ? सिंह को देखकर प्रद्युम्न हर्षित हुए । तब नारदजीने फिर कहा, हे महाबाहु ! और इन आगे खड़े हुए लीलायुक्त हाथियों को भी देखो, जो पद पदपर लीला करते हैं । ८०-८४ । सुगन्धित मद् बहने के कारण उनके कपोलों पर भौंरोंके झुण्ड के झुण्ड गुजार कर रहे हैं, ताड़ के पत्रोंके समान उनके बड़े २ कान
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