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________________ से शोभित था, और किंकिणी की ध्वनिसे रमणीय था। उसकी खिड़कियों में तथा दूसरे स्थानोंमें मोतियोंकी झालरें लटक रही थीं, और इन सब सामग्रियोंसे वह दूसरे स्वर्गलोकके समान मालूम चरित्र होता था ।३८-४१। इसप्रकार सुन्दर वेगगामी विमानको बनाकर सारभूत विज्ञानके जानने वाले प्रद्युम्नकुमारने नारदजीसे कहा, हे तात ! यदि यह आपके योग्य हो, तो इमपर बैठ जायो। क्योंकि मैंने इसे बालबुद्धिसे बनाया है ।४२-४३। ऐसा कहने पर नारदजी ने उस अतिशय सुन्दर विमानको देखा, जो कि पुण्यहीनोंको प्राप्त होना बहुत कठिन है । उससे उन्हें बड़ा अचम्भा हुया ।।४। निदान जब वे विमान में बैठ गये, तब कुमारने उसे धीरे २ अाकाश पर चढ़ाया। परन्तु आगे कुमारके कुटिल (हास्यरूप) प्राशययुक्त होनेसे जब विमानकी गति मन्द हो गई, और उस नारद ने देखा, तव वे वोले, तरी माताका मुखकमल तेरे वियोगरूपी तुषारसे अाक्रान्त होरहा है, सो तुझे सूर्य के समान जाकर उसे मुरझानेसे बचाना चाहिये ।४५ ४७। तुझे शीघ्रतासे जाकर अपनी दुःखी माताको धीरज बँधाना चाहिये । ऐसे समर्थ पुत्रके होते हुए क्या तेरी जननी को दुःख होना अच्छा है ? ।४८। नारदके ऐसे वचन सुनकर प्रद्युम्नकुमार अपने विमानको अतिशय तेज गतिसे चलाने लगा।४६ । उसकी इस क्रीड़ासे अर्थात् इतने जल्द चलानेसे नारदजी बहुत अाकुल व्याकुल होगये। उनके जटा बिखर कर उड़ने लगे, शरीर कांपने लगा, हाथोंकी कुहनियोंमें, मुंहमें, और दांतोंमें लुढ़कने पुड़कने से चोटें लग गई और वोलते समय जीभ दांतोंके नीचे आकर कट गई ।५०-५१॥ जेटके महीनेमें जैसे समुद्र में जहाज आकुलित हो जाते हैं, उसी प्रकारसे प्राकुलित हो नारदजी बोले, वेटा ! तृझे इस विमानमें बिठाकर इतना अाकुल व्याकुल क्यों कर रहा है तू आनन्दसे परिपूर्ण है, सो तु मुझे स्नेह के वशवर्ती हुए अपने माता पिताको जाकर उत्कंठित करना चाहिये ।५२.५४। रुक्मिणी मेरी पुत्री है, वह मुझपर बड़ा वात्सल्य रखती है। इसी प्रकार तेरा पिता श्रीकृष्ण भी मेरी बड़ी भारी wwww.jabrary.org Jain Educ For Private & Personal Use Only interational
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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