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चरित्र
कारी और शीघ्रगामी विमान बनाके तैयार कर दिया और कहा, हे वत्स यह विमान तुम्हारे योग्य बना है । सो इसपर जल्दी ही बैठ जाओ। जिससे हम तुम दोनों रुक्मिणीके पास पहुँच जावें ॥ २६ ॥ नारद के वचनों से प्रसन्न होकर कुमार ने कहा, तात क्या आपका यह विमान मुझे बैठाने के लिये समर्थ है ||२७| तब नारदजी मुस्कुराके वोले, हाँ तुम्हारे लिये तो बहुत मजबूत है । तुम शीघ्र ही बैठ जाओ । यह सुनकर कामदेवने उसपर बड़े ही जोर से अपने पैर रख दिये । जिससे उसकी सब सन्धियाँ टूट गई सैकड़ों छिद्र हो गये । २८ - २६ | यह कौतुक करके नीति चतुर कुमार बोला, धन्य है ! धन्य है ! आप तो शिल्प विद्यामें बड़े ही प्रवीण हैं |३०| हे विभो थापने यह विद्या किसके पास सीबी थी ? सचमुच इस संसार में आपके समान शिल्पकार न तो हुआ है, और न आगे होगा । ३१ । मैंने तो आज से अच्छी तरह जान लिया कि, जगत में नारद ऋषिके समान विद्याबलसहित विज्ञानी कोई भी नहीं ||३२| कुमार के इस परिहाससे लज्जित होकर बुद्धिमान नारद बोले, मैं तो वृद्ध हो गया हूँ। मेरी जरायुक्त देह में चतुराई कहां से थाई ? तुम तो सब विद्याओं में कुशल हो; सम्पूर्ण विज्ञानके ज्ञाता हो और नवीन यौवन सम्पन्न हो, तुम क्यों नहीं बनाते ? | ३३ ३४ । हे वत्स ! अब तुमही विमान बना जिससे शीघ्रता से चलें । व्यर्थ ही क्यों ममय खो रहे हो ? तुम्हारी माता तुम्हारे लिये बहुत दुःखी हो रही है | ३५ | व्रतधारी नारद के कहने से प्रद्युम्नकुमारने अपने यशोराशिके समान (सफेद) एक विस्मयकारी विमान जल्द ही बना दिया | ३६ | उस विमान में बड़े २ घंटे लटक रहे थे. अनेक ध्वजायें उड़ रही थीं, और पचरंगे उत्तमोत्तम रत्नोंसे बना हुआ उसका कूट (शिखर) शोभित होता था |३७| उसका मध्यभाग (कटि) किनारे, सिंहासन सोनेके रचे गये थे । इसके सिवाय वह विमान बावड़ी, तालाब श्रादिके समूहोंसे शोभित किया गया था, हंस चक्रवाकादि पक्षियोंसे युक्त था, केला सुपारी ताड़ आदि वृक्षोंसे अलंकृत था; चँवरों छात्रों तथा नाना प्रकार के वादित्रों
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बम्न
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