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________________ आकाश मार्गसे एक तेजःपुंजको आते देखकर उस सभामें बैठे हुए समस्त मनुष्योंको बड़ा आश्चर्य हुआ ॥३॥ यह सूर्यमयी तेज है अथवा अग्निसंबंधी तेज है ? सूर्यका गमन तो तिरछा चरित्र होता है और अग्निकी ज्वाला ऊपरको जाती है परन्तु यह तो नीचे उतरता चला आता है। तब यह क्या पदार्थ है ? इस तरह दर्शकोंके चित्तमें कौतूहल उपजा ॥४-५॥ जब वह आकाशसे कुछ नीचे उतरा, तब मालुम हुआ कि यह कोई मनुष्य सा है, जब कुछ निकट आया, तब निश्चय हुआ कि यथार्थमें मनुष्य है और जब बिलकुल पास पा गया तब सबको ज्ञान हुआ कि ये नारद हैं ? इस तरह क्रमसे मनुष्योंने नारद मुनिका निर्णय किया ॥६-७॥ ये नारद कोपीन पहने, जटा रखाये हुए हाथमें कुशाका आसन लिये हुए थे। ये कौतूहलके अभिलाषी, कलहप्रिय (लड़ाई झगड़े खड़े करनेके प्रेमी) जिनमार्गमें सदा लवलीन, अभिमानरूपी धनके धारक, पापवर्जित हास्य करनेमें आसक्त और जिनवंदना में सदा तत्पर थे ॥८-६॥ नारदमुनिको ममीप आया जानकर सर्व सभाके सज्जन और श्रीकृष्ण महाराज प्रसन्न चित्तसे खड़े हो गये ॥१०॥ कृष्णजीने तत्काल सन्मुख जाकर उन्हें नमस्कार किया. चरण प्रक्षालन करके अर्घ चढ़ाया, अपने सिंहासनपर विराजमान किया और भक्ति भावसे इस तरह स्तवन किया, जैसा कि घरमें आने वाले अतिथिका करना चाहिये ॥ ११-१२ ॥ हे महाभाग्यवान मुनि ! आप तपके द्वारा पवित्र हैं। इसमें सन्देह नहीं कि मेरा बड़ा मौभाग्य है जो आपके तुल्य महानुभावका आज मेरे घर शुभागमन हुआ है । आज मेरा घर आपके चरणकमलके स्पर्शसे पवित्र हुआ है। जो भाग्यहीन होते हैं, उनके गृह पर सत्पुरुषोंका शुभागमन नहीं होता है ॥१३-१४॥ इससे जाना जाता है कि मैंने पूर्वभवमें महत् पुण्य संचय किया है, जिससे इष्ट पदार्थकी प्राप्ति हुई है । अब मुझे विश्वास होगया है कि पुण्योदयसे मेरे पाप भी विनाशको प्राप्त हो www. Jain E brary.org For Private & Personal Use Only n International
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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