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अम्न
कह सुनाया ।६६। उसे सुनते हुए नाररजी अपने दोनों कानोंको बन्द करके मस्तक धुन करके और नेत्र बन्द करके बोले, हे वत्स ! इस लोकनिन्द्य चरचाको अब मत कह । नीच पुरुषोंके साथ गमन || चरित्र करने वाली और पाप चित्तवाली स्त्रियोंके चरित्रोंका वर्णन किससे हो सकता है ? ये दुष्ट नारकिनी कुपित होकर चक्रवाकके समान प्रीति करनेवाले अपने स्वामीको, प्राणप्यारे पिताको, पुत्रको, भाईको, तथा गुरुको मार डालती हैं, फिर दूसरे मनुष्योंकी तो कथा ही क्या है ? १७०-७३। नारदजीके वचन सुनकर प्रद्युम्नकुमार बोले, महाराज सुनिये, मैं अब पिता रहित हो गया। मैं अब किसका होऊँगा और किसके पास जाऊँगा। हे महामति ! मेरे जीवनका उपाय अब आपही बतलावें ।७४-७५। ये कालसंवर महाराज निश्चयपूर्वक मेरे पिता हैं और मुझे दूध पिलानेवाली कनकमाला मेरी माता है ७६। परन्तु इस समय इन्हीं दोनोंने मेरे साथ इसप्रकारका कर्म किया है । इसलिये अब बतलाइये कि मैं शरणरहित होकर कहां जाऊँ ? ७७। प्रद्युम्नके वचन सुनकर नारदजी रमणीय वचन बोले कि, हे वत्स ! मेरा कथन सुन ७८। अपने मनमें खेद मत कर कि, मेरे कोई बन्धु नहीं हैं। तेरे बहुत से बन्धु हैं, उनका वृत्तान्त मैं कहता हूँ ७६। द्वारिकाके स्वामी श्रीकृष्ण नामके नारायण तेरे पिता हैं, जिनका जन्म हरिवंश नामके वंशमें हुआ है, और जो यादवों के शिरोमणि हैं ।८०। और उनकी प्राण के समान प्यारी रूप तथा लावण्यसे युक्त सम्पूर्ण गुणोंकी पापरहित खानि रुक्मिणी नामकी पट्टरानी तेरी माता है।८। उसने मुझे बड़े आदरसे तेरे लानेके लिये भेजा है। उसके बुलानेका एक कारण है, सो अभी कहता हूँ।२।।
हे प्रद्युम्न ! तेरो माताकी एक सत्यभामा नामकी मपत्नी (मौत) है उसके माथ उसका बड़ा भारी विरोध है। इसलिये मेरे साथ तेरा जाना बहुत उचित है । प्रद्यम्नकुमार अपने वंशकी मत्कथा सुनकर अतिशय प्रशन्न हुए और नारदके प्रति उन्हें प्रीतिबुद्धि उत्पन्न हुई। फिर वे नारदके पूर्व में
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