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प्रचम्न
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वचनोंसे सन्तुष्ट होकर प्रद्युम्न भी उनके साथ निकल पड़ा | ८८-६० पश्चात् सबके सब नगर के बाहर जो जलकी वापिका थी, बड़े श्रानन्दके साथ उसके पास गये। वहां वे अपने सब वस्त्र उतारकर तथा चरित्र दूसरे वस्त्र धारण करके वापिकामें कूदने के लिये वृक्षोंपर चढ़ गये ।६१-९२| इतनेहीमें प्रद्युम्न कुमार के gora योगसे विद्याने आकर तथा उसके कान में लग कर एक हितकारी बात कही । ६३ । हे महाभाग वत्स ! मेरे कल्याणकारी वचनोंको सुन; ये सब पापी वैर भावके कारण तुझे मार डालना चाहते हैं । इसलिये मेरी बात मानकर वापिकाके जलमें इनके साथ कूदकर तू स्नान मत कर । मैं तेरा हित चाहनेवाली हूँ । ६४-६५। विद्या के ऐसे वचन सुनकर प्रद्युम्न चकित होरहा । तत्काल ही विद्या के बलसे अपने जैसा दूसरा रूप बनाया और आप अदृश्य होकर वापिका के तटपर बैठ कौतुक देखने लगा । इतनेमें वृक्षके ऊपर जो प्रद्युम्नका विद्यामयी रूप चढ़ा हुआ था, वह वापिका के जल में पापात करके कूद पड़ा । यह देख वे सबके सब विद्याधरपुत्र, "चलो ! जल्दी से कूदो ! और पापीको जल्दी मार डालो ! सब एक साथ कूदके इसे पिचल डालो।" ऐसा कहकर कूद पड़े ।६७-६९ | जब वे सबके सब एक कतार बांधकर बावड़ी में पड़े, तब प्रद्युम्नको बड़ा भारी क्रोध उत्पन्न हुआ। वे श्राश्वर्यचकित होकर विचारने लगे,- , - ५००। ये लोग मुझे किस उद्देश्यसे मारनेके लिये तैयार हुए हैं ?
पिताकी आज्ञासे हुए हैं, या बिना आज्ञा के स्वयं ही हुए हैं |१| जान पड़ता है, उस पापिनी माताने पित के या विरूपक बनाकर झूठी सच्ची बातें कही हैं । और उसीके वाक्योंपर विश्वास करके पिताने कुपित हो इन्हें बुलाकर मुझे मारने की आज्ञा दी है । २-३ | इसीलिये ये दुराचारी मुझे मारने के लिये आये हैं । अतएव अब मैं इन्हें निश्चयपूर्वक मारूँगा |४| इस प्रकार मनमें सोचकर कुमार अपनी विद्या प्रभावसे एक बड़ी भारी बावड़ीके बराबर शिलाको ले आये और उससे बावड़ीको ढक दी। फिर उन सबको नीचे सिर और ऊपर पैर करके उसी में लटका दिये। केवल एकको
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