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पदाम्न
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मेरे शीलकी रक्षा हुई है । ७६ । यदि पापके उदयसे कहीं मेरा शीलभंग हो जाता, तो आज अवश्य ही मेरा मरण हो जाता। क्योंकि कलङ्कयुक्त जीवनसे तो मरना ही अच्छा होता है । ७७ । हे नाथ ! आप के निर्मल कुलमें यदि मैं कलङ्किनी हो जाती, तो तीनों वंशोंको कलंकित करनेवाले मेरे जीवनका क्या फल होता ? | ७८ | किसी बड़े भारी पुण्यके योग से मैंने उसके भुजपंजरसे धूल में लिपटा हुआ अपना शरीर चाकुल होकर निकाल पाया है | ७६ | अब में तो जब उस दुष्टका मस्तक रक्त में लथपथ हुआ पृथ्वीपर लौटता हुआ देखूँगी, तब ही अपने जीवनको सच्चा समझूगी |८०|
कनकमालाके वचन सुनकर राजा कालसंवरने अपने सम्पूर्ण पुत्रोंको बुलाकर एकान्तमें कहा कि, हे पुत्रों मेरे वचनोंको आदर पूर्वक सुनो, – इस पापी प्रद्युम्नको तुम जल्द ही मार डालो । ८१-८२। यह किसी नीच कुलमें उत्पन्न हुआ है। इसे में एक वनमेंसे ले थाया था । नहीं जानता हूँ, यह किस का पुत्र है । मेरी कृपा से यह इतना बड़ा हुआ है । -३। सो अब जवानी पाकर तुम्हारी कीर्तिका घात करनेवाला ही गया है । तुम सबके साथ वनमें जाकर आप तो रथ में बैठकर आया और तुम सब पैदल आये। जिस समय मैंने तुम्हें और उसे इस तरह देखा, उसी समय से वह शठ चित्त से उतर गया है । ८४-८५। इसलिये व जिसमें कोई जान न पाने, इस तरहसे इसे मार डालना चाहिये । पिताके ऐसे वचन सुनकर वे सव पुत्र बहुत प्रसन्न हुए | = ६ | उन्होंने अपने जीमें कहा, हम पहले ही से उस पापीको मारना चाहते थे, फिर अब तो पुण्यके योगसे पिता की आज्ञा मिल गई है | ७|
पिताको प्रणाम करके वे पांचसौ भ्राता वहांसे जल्दीही चले आये और पीछे किसी तरहका लोकापवाद नहीं होवे, इस विचार से उन्होंने प्रद्युम्न कुमारसे कहा, हम लोग जलक्रीड़ा करने के लिये वापिकाको (बावड़ीको जाते हैं इसलिये तुमसे कहने के लिये आये हैं। क्योंकि तुमपर हमारा बड़ा भारी मोह है अर्थात् हम तुम्हें बहुत चाहते हैं और तुमसे प्यारा कोई नहीं है । भाइयों के ऐसे मीठे
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