SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पचम्न १८ Jain Educato afar के साथ नगर बाहिर जो गोपुर था, वहां जाकर जब वह अर्जिका गोपुरकी गुफा में प्रवेश करके ध्यानस्थ हो गई, तब गुफा के बाहिर ही एक स्थानमें उपवास धारण किये हुए जिनदेवके नामका जप करनेमें ध्यान लगा दिया । ४३२-४३४ । उसी रात्रिको दैवयोग से वहां एक भयङ्कर व्याघ्र आया और इस धीवर की लड़की को भक्षण कर गया । ३ ५। सो जिनधर्मके प्रभाव से उसका ध्यान योग धारण किये हुए ही मरण हो गया । उस समय वह व्रतों का पालन भी करती थी, इसलिये शरीर छोड़कर सोलहवें स्वर्ग में इन्द्रकी इन्द्राणी हुई। वहां उसने पूर्वपुण्य के प्रभाव से चिरकाल तक सुख भोगे । ३६-३७| ataका जीवन्त में स्वर्ग से चयकर कुंडनपुर नामके श्रेष्ठ नगर के राजा भीष्म के गुणवती पुत्री हुआ । पूर्व पुण्यके प्रभाव से उसका रुक्मिणी नाम हुआ । रुक्मिली उसके बड़े भाईने पहले दमघोष के पुत्र शिशुपाल को देनी कही थी । ३८-३९। परन्तु पीछे नारद के मुँह से श्रीकृष्ण नारायणकी प्रशंसा सुनकर वह उन्हीं में अनुरक्त हो गई । और इसलिये उसने अपना दूत श्रीकृष्ण के पास भेजा । दूत के वचनोंसे संतुष्ट होकर श्रीकृष्ण अपने भाई बलभद्र के साथ कुंडनपुर आये और वहां लड़ाई में चन्देरी के राजा शिशुपालको मारकर रुक्मिणीको ले आये और एक वनमें उसके साथ स्वयं विवाह करके उसे पट्टराणीका पद देकर द्वारिका में ले आये |४०४१। सो रुक्मिणी महाराणी के उदर से तू सम्पूर्ण अंग उपांगों से सुन्दर प्रतापी पुत्र उत्पन्न हुआ है । जब तु केवल छह दिन का था, तब रात को तेरा पूर्व जन्मका बैरी एक दैत्य तुझे हराकर ले गया था । ४४३ | यह सुनकर प्रद्युम्न कुमारने विनय पूर्वक पूछा, हे भगवन् ! अब यह बतलाइये कि मुझे माता का वियोग अपने किस पापके उदयसे हुआ है |४४ | यति महाराज बोले, वत्स ! इसमें तेरा कोई भी पाप कारण नहीं है । तेरी माता के पूर्वजन्मके पाप ही से वियोग हुआ है | ४४५ | जब वह धीवरीके जन्मसे पहले लक्ष्मीवती नामकी ब्राह्मणपुत्री थी, तब उसने किसी समय मोरके ( मयूर के बच्चों को कौतुक International For Private & Personal Use Only VE चरित्र www.jangibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy