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चरित्र
मुझपर कृपा करके क्षमा करो।१९। और वह धर्म मुझे सुनायो जिससे मेरा इस पापसे छुटकारा हो।
श्राप सम्पूर्ण प्राणियोंका हित करने वाले हैं. और आप ही जीगोंका उपकार करने वाले हैं।४२०। यह १८८] सुनकर उस रोती हुई धोवरीसे वे दयान योगी बोले, हे बेटी तू दुःख मत कर क्योंकि यह दुःख ही
संसारका करने वाला है ।२१। “यह बात सब ही लोग जानते हैं कि, रोनेसे राज्य नहीं मिलता है" इस लिये अब तू रोना पूर्ण कर, बहुत रो चुकी और जिन भगवानके कहे हुए धर्मको धारण कर ।२२। ये प्राणी पूर्व जन्मके कमाये हुए कर्मों का फल भोगते हैं। इसलिए मुनिनिन्दा करने के पापसे तू निन्द्य कुल में उत्पन्न हुई है ।२३। अब तू गृहस्थ धर्म में अनुरक्त होकर दयामयी धर्म को धारण कर। यह सुनकर धीवरी बोली, हे प्रभो ! उस धमका स्वरूप मुझे समझायो ।२४। तब मुनि महाराज ने सम्यक्त्वसहित बारह प्रकार का गृहस्थ धम उस धीवरी को समझाया ।२५ तब जिनेन्द्रदेवका भाषण किया हुआ वह सद्धर्म ग्रहण करके धीवरीने पापके नाश करने वाले मुनिराजके चरणोंको नमस्कार किया ।२६। इसके पश्चात् दयालु मुनि महाराज तो तपस्याके योग्य स्थानको चले गये और वह धीवरी नवीन पापके अाश्रवसे वर्जित तथा जिनधर्ममें सदा अनुरक्त रहकर कुछ काल तक उसी झोंपड़ी में रही। पश्चात् वह जिनधर्ममें लवलीन रहने वाली बाला प्रसन्नता सहित कौशला नगरीको गई ।२७-२८। वहां वह जब हर्षके माथ जिनेन्द्र भगवानके मन्दिर में गई तब उसका धर्मपालिनी नामकी अर्जिकासे मिलाप हुआ, जो गणिनी अर्थात् अनेक अर्जिकाओंके संघकी स्वामिनी थी।२६। उस अजिंकाने बहुतसा धर्मोपदेश दिया, जिससे वह धीवरी धर्मध्यानमें
और भी अधिक परायण हो गई।३०। वह उसके पीछे पीछे रहने लगी और नानाप्रकारके तप करने लगी, जिससे उसका शरीर कृश हो गया ।३१। एक दिन वह धीररी अर्जिकाके साथ राजगह नामके श्रेष्ठ नगरकोगई। वहां उसने जिनमन्दिरमें जाकर नमस्कार किया। और फिर रातको उसी
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