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________________ - प्रगम्न चरित्र के वश उससे अलग कर दिया था। और उन्हें सोलह घड़ी तक मातासे सुखपूर्वक अलग रक्खा था। पश्चात् उन्हें उनकी माताको दे दिया था ।४६-४७। इसी पापके फलसे-अर्थात् उसने जो मयूरनीके बच्चोंको मातासे अलग किया था, उस वियोगनित पापसे रुक्मिणी को यह तेरा वियोग हुआ है। पाप कहीं पर भी अच्छा नहीं होता है ।४८। यहाँ तुझे सोलह वर्ष माताके उसी पापके फलसे बीते हैं। इसलिये किसीका भी वियोग नहीं करना चाहिये।४९॥ हे वत्स ! इसप्रकार अपने चित्तमें धर्म और अधर्मका फल समझकर पापको दूर ही से छोड़ना चाहिये और धर्म करना चाहिये ।५०। मुनि महाराजके वचन सुनकर और उनके चरणकमलोंको नमस्कार करके प्रद्युम्नकुमार आनन्द के साथ कनकमाला माताके महलको गये। कनकमालाके समीप जाकर प्रद्युम्न कुमार विना नमस्कार किये हुए ही बैठ गया । यह देख वह अपने मनमें सोचने लगी ।५१-५२। अवश्य ही यह मेरे रूपके पाशमें बद्ध होकर आया है। इसीलिये इसने मुझे नमस्कार नहीं किया है। अपने हृदयमें से इसने मेरा माताभाव निकाल दिया है। इस समय मैं इमसे जो कुछ कहूँगी, वह अवश्य करेगा। इसमें सन्देह नहीं है ।५३। इसप्रकार चितवन करके वह प्रद्युम्नसे बोली, हे महाभाग कामदेव ! मेरे मनोहर वचन सुनो।५४। यदि रमणीय और मनोहर वचनोंके अनुसार काम करोगे, तो मैं तुम्हें रोहिणी आदि समस्त मन्त्रगण सिखला दूँगी ।५५। यह सुनकर प्रद्युम्नकुमार कनकमालासे हँसकर बोला, आजतक क्या कभी मैंने तुम्हारी आज्ञा का उल्लंघन किया है ? कृपा करके मुझे रोहणी आदि मत्रगण दे दो। और मुझे दो, चाहे मत दो, परन्तु तुम्हारी कही हुई बात मैं अवश्य करूंगा ।५६-५७। ऐसे वाक्योंसे संतुष्ट होकर वह कनकमाला रानी प्रद्युम्नसे बोली, लो, इन श्रेष्ठ मंत्रोंको विधिपूर्वक ग्रहण करो।५८। ऐसा कहकर उस कामसे श्राकुलव्याकुल हुई मूर्खाने बड़ी प्रसन्नता और प्रीतिसे प्रद्युम्नको वह मन्त्रोंका समूह दे दिया ।४५९। Jain Edwell on international For Privale & Personal Use Only www.parelibrary.org||
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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