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________________ चरित्र - उसी समय वे ज्ञानी मुनिराज पीछेसे आये और दर्पणमें उनका स्वरूप दिखाई दिया। जब उसने अपने रूपके समीप मुनिके रूपको देखा, तब बड़े भारी घमण्डके साथ उसने अपने मनमें विचार किया कि कहां तो मेग सम्पूर्ण लोगोंके मनको हरण करनेवाला मनोज्ञ रूप और कहां इस मुनिका निंदनीय रूप ? मुनिके इस रूपको धिक्कार है ! धिक्कार है ! इस प्रकारसे उस पापिनीने उक्त मुनिचन्द्र के उत्तमरूपकी नानाप्रकार से निन्दा करके बड़ा भारी पाप कमाया ।६०-६४। उस पापके उदयसे वह पापिनी थोड़े ही समय में कुष्टरोगसे पीड़ित हो गई। उसके सारे शरीरमें घिनावना कोढ़ होगया । ठीक ही है, निन्दा कर्मके प्रभावसे कहीं भी सुख नहीं मिलता है ।९५ ६६। उस कोढके कारण उसके शरीरमें बहुत दुःख होने लगे, जिसके सहने में असमर्थ होकर वह अागमें गिर पड़ी। और विवश होकर अार्तध्यानसे मरकर उस बड़े भारी पापके फलसे निंदनीय शरीरको धारण करनेवाली गर्दभी (गधी) हुई । मो घोर दुःख सहकर मरी और गृहशूकरी हुई। वह भी कौटपालके मारनेसे प्राण छोड़कर कुत्ती हुई।७६८। एक दिन शीतकालमें वह कुत्ती अपने बच्चों के साथ किसी बगीचेके समीप एक घासकी गंजीमें बैठी हुई थी। घाममें आग लगनेसे उसीमें जल गई। बच्चोंके मोहके मारे निकलकर भाग नहीं सकी । वह मरकर पापके फलसे भेकनिगम नगरमें किसी धीवरकी पुत्री हुई। उसका शरीर अतिशय निंद्य और दुर्गंधियुक्त हुआ। उसके शरीरकी बुरी गन्ध उसके कुटुम्बके लोगोंसे भी नहीं मही गई, इसलिये उन्होंने उस पापिनीको घरसे निकाल दी। ठीक ही है, पापी पुरुषको सुख कहां मिल सकता है ? ॥३६९-४०२। परिवारके लोगोंके द्वारा भी निन्द्य ठहराई हुई वह धीवरी घरसे निकल कर गंगा के समीप एक सैंकड़ों छेदवाली घासकी झोपड़ी बना कर रहने लगी।४०३। और लोगों को डोंगीके द्वारा पार उतार कर उनसे पाये हुए पैसोंसे अपना उदर पोषण करने लगी।४। वहां रहकर वह अपने कमाये हुए द्रव्य Jain Educatinternational For Private & Personal Use Only www.jabrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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