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वह तुझे मोहके वशसे दो विद्यायें देना चाहती है, सो तुझे वहां जल्द ही जाकर छल करके उन्हें ले लेना चाहिये ।७७। यह सुनकर प्रद्युम्नने हर्षित होकर मुनिराजसे कहा, हे नाथ ! आपके वचनोंका मैं पालन करूँगा। आप जीवधारियोंके अकारणबन्धु हैं । इसलिये मेरे चित्तमें जो एक बड़ा भारी विस्मय हो रहा है, उसके विषयमें और भी कुछ पूछता हूँ कि, मेरी माताके (रुक्मिणीके) साथ जो बाल्यावस्थामें ही अतिशय दुःसह विरह हुअा है, वह मेरी माताके कमों के दोषसे हुआ है अथवा मेरे पापके उदयसे हुआ है ।७८-८०। यह सुनकर मुनिराज बोले हे वत्स ! सुनो, यह तुम्हारा वियोग तुम्हारी माताके ही कर्म के दोषसे हुआ है। उसका कारण मैं कहता हूँ। क्योंकि पूर्व में संचित् किये हुए पुण्य और पापसे ही सुख और दुःख भोगने पड़ते हैं ।८१-८२।
जम्बूद्वीपमें भरत नामका प्रख्यात क्षेत्र है और उसमें मगध नामका उत्तम देश है, जो प्रसिद्ध २ मनुष्यों से भरा हुआ है। उसमें एक लक्ष्मी नामका ग्राम है। वह पृथ्वीमें प्रसिद्ध है। उसमें सोमशर्मा नामका विप्र राजा था, जो सम्पूर्ण शास्त्रोंका जाननेवाला, श्रुतिस्मृतिके अनुसार चलनेवाला, जप होम आदि कर्मों में तत्पर रहनेवाला और ब्रह्मकर्मके विचारोंका ज्ञाता था ।८३.८५। उसकी कमला नामकी भार्या थी, जिसके पास मायाचार बिलकुल नहीं था उसके उदरसे रूप और गुणकी घर लक्ष्मीवती नामकी कन्या उत्पन्न हुई।८६। लक्ष्मीवती सभी लक्षणोंसे परिपूर्ण थी। जब वह यौवनभूपित हुई, तब अपने रूपके आगेतीन जगतको तृणके समान गिनने लगी।७। एक दिन उसके घर एक महीनेका उपवास किये हुये एक योगिराज अाहार करनेके लिये-पारणा करनेके लिये आये । वे निर्मल अवधिज्ञानके धारण करनेवाले, सर्व शास्त्रोंके पारगामी, कामदेवरूपी महाशत्रुको जीतनेवाले
और रत्नत्रयरूपी विभूषणके धारण करने वाले थे। परन्तु उनका शरीर धूल वगैरासे मलिन होरहा । था।८८८९। जिस समय वह रूपशालिनी लक्ष्मीवती अपने सर्व सुन्दर रूपको दर्पणमें देख रही थी,
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