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________________ वह कामवती कनकमाला बड़े बालस्यसे जम्हाई लेती हुई क्षणभर में उठ बैठी, और परिवार के लोगों को अर्थात् दासदासियों को दूर करके अँगड़ाती हुई प्रद्युम्न कुमारसे मीठे शब्दों में बोली, ४५४७ हे मदन ! एकाग्रचित्त होकर मेरी बातको सुनो। क्या तुम्हें मालूम है कि यथार्थ में तुम्हारे माता और पिता कौन हैं ? |४ | प्रद्युम्नने कहा, तुम मुझसे ऐसा क्यों पूछती हो ? मेरी समझमें तो निश्चय करके तुमही मेरी माता हो, धौर कालसंवर महाराज मेरे पिता हैं । ४६ । यह सुनकर कनकमाला रानी बोली, तुम अपनी यदि मध्य और अन्तकी सब कथा सुनो, – 1५० 1 एकबार मैं अपने स्वामी के साथ वनक्रीड़ा करनेके लिये गई थी । सो नदी, नद, तालाब और कैलाश पर्वत के शिखरों पर बहुत कालतक रमण करके हम खदिरा नामकी बड़ी भारी घटवी में पहुँचे, जिसके बीच में तक्षक नामका बड़ा भारी पर्वत शोभित है । जब हमारा विमान उक्त पर्वत के ऊपर पहुँचा तब आकाश में तुम्हारे पुण्य के प्रभावसे वह अटक रहा । ५१-५३। यह देख हम दोनों पर्वत पर उतरे, तो देखा कि, एक बड़ी भारी शिला तुम्हारी स्वांसके जोरसे हिल रही थी । अचरज होने से उसे उठाई, तो सुन्दर आकार और सम्पूर्ण शुभ लक्षणोंके धारण करनेवाले तुम दिखलाई दिये । सो तुम्हें मैंने तत्काल ही स्नेहके वश उठा लिया और अपने हृदय में निश्चय करके कि तरुण होनेपर तुम्हें ही मैं अपना पति बनाऊंगी, तुम्हें घर ले आई और पालन पोषण करके बढ़ाने लगी । ५४-५६ । अब तुम काम योग्य होगये हो, मेरे अतिशय प्यारे हो, इसलिये मेरे साथ भोगोंको भोगो । यदि ऐसा न करोगे, तो मैं मर जाऊंगी और तुम्हारे सिरपर स्त्रीहत्याका बड़ा भारी पाप लगेगा । ५७| माता के मुँह से इसप्रकार दोनों लोकोंसे विरुद्ध वचन सुनकर प्रद्युम्नका मस्तक दुःखसे ठनक उठा । वह बोला, हे माता ! तूने यह निंद्यसे भी अतिशय निन्द्य बात क्या कही ? क्या उत्तम कुलमें उत्पन्न हुए पुरुषों को ऐसा कार्य शोभा देता है ? । ५८-५९ | हे माता ! कुमार्ग में गये हुए अपने चित्तको तुझे रोकना Jain Educafi International For Private & Personal Use Only प्रधम्न १८३ चरित्र www.jaibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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