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________________ लक्ष्मीकी उपमा क्यों देते हैं ? कारण लक्ष्मी तो चपला होती है परन्तु मैं चपला कदापि नहीं हूँ ॥ ५० ॥ सत्यभामा विनयादि गुणोंकी धारण करनेवाली अपने भर्तारकी आज्ञानुसार चलनेवाली और दोनों कुलोंको विशुद्ध करनेवाली विद्याधरकी पुत्री थी ॥ ५१ ॥ चन्द्रमा कलंकसहित है और पखवाड़े के पीछे क्षीण होता जाता है परन्तु रानी निष्कलंक और उदयरूप है अतएव उसके मुखको चन्द्रमाकी उपमा किस प्रकार दी जाय ? ॥ ५२ ॥ उसने अपनी वेणीसे मोरको, ललाट (मस्तक) द्वारा ष्टमी चन्द्रमाको, नासिका द्वारा तोते की चोंचको और नेत्रद्वारा हिरणियोंको भी पराजित किया था । इसी कारण मैं समझता हूँ कि लज्जित होकर हिरणियोंने वनका शरण लिया था ।। ५३-५४ ॥ उसने अपने दाँतोंसे कुन्दपुष्पकी कलियों को, ओठोंसे बिंबाफलको (कुन्दरूके पके फलको) कण्ठसे शंखको और दोनों स्तनोंसे नारियलोंको जीत लिया था ॥ ५५ ॥ वह मालतीकी माला के समान कोमल भुजाओं और शुभलक्षणोंवाली रेखाओंसे युक्त करकमलोंसे बहुत सुन्दर जान पड़ती थी । ॥ ५६ ॥ उसने अपनी कटिद्वारा सिंहसमूहको, नितम्बों से पर्वतकी सघनताको और जंघाओं से कदली वृक्ष (केले) के स्तम्भको जीत लिया था ऐसा मैं समझता हूँ ॥ ५७ ॥ उसके दोनों चरणकमल लाल मनोहर और सुकोमल तथा शुभलक्षणों की रेखाओं से मण्डित थे || ५८ ॥ उसका शरीर शिरीषके फूल के समान सुकुमार और चाल मदोन्मत्त हाथीके समान थी । वह शास्त्रार्थ करनेमें सरस्वती के समान निपुण और चतुर थी ॥ ५६ ॥ उस सत्यभामा पट्टरानीके साथ श्रीकृष्ण महाराजने सव कंटकों से (द्वेषी राजाओं की बाधासे ) रहित और राज्य सम्पदासहित चिरकाल राज्य किया ||६० || जिस प्रकार काले मेघको बिजली, मयूरको शिखा और समुद्रको उसकी बेला (ज्वार) शोभायमान करती है, उसी प्रकार राजाको रानीने शोभायमान किया || ६१ || जिसप्रकार महादेवको पार्वती और इन्द्रको इन्द्राणी प्रिय थी, उसी प्रकार श्रीकृष्णको सत्यभामा प्रिय हुई || ६२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only प्रदान G १२ चरित्र www.jae brary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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